अनामी पुरूष सबके कर्ता धर्ता हैं । इन्होंने अपनी इच्छा से । अपनी मौज से अगम लोक की रचना की । और अगम पुरूष को स्थापित किया । फिर अलख लोक की रचना की । और अलख पुरूष को स्थापित किया । ये ही वो मालिक हैं । जिन्होंने सतलोक की रचना की । और सतपुरूष को स्थापित किया । अनामी पुरूष ने जो तीनों लोक अपने से अलग स्थापित किए । ये तीनों लोक । तीनों देश एकरस हैं । नीचे की रचना का विस्तार सतपुरूष ने किया । एक आवाज ?? इतनी जोर की सतपुरूष में से निकली । जो अनन्तों मण्डल । अनन्तों लोक । जो गिनती में नहीं आ सकते । उसकी रचना कर दी । ये सारे के सारे मण्डल । लोक इसी सतपुरूष की आवाज पर टिके हुऐ हैं । जब ये लोक सतपुरूष ने तैयार कर दिए । तो अपने देश से दो धाराएं निकाली । एक काल की । और दूसरी दयाल की धारा । फिर एक आवाज चली । जो उसमें से निकाल कर ले आई । उन्होंने अपने देश से अलग ईश्वर । ब्रह्म । पारब्रह्म और महाकाल को उसी आवाज पर स्थापित कर दिया । उसी आवाज पर ? उसी शब्द पर ? उसी वाणी पर ? उसी नाम पर ? ये सबके सब उसी सतपुरूष का अखण्ड ध्यान करते रहे । तपस्या करते करते इतने युग बीत गए कि कलम स्याही और कागज नहीं है । जो लिखा जा सके । तब जाकर सतपुरूष प्रसन्न हुए । और पूछा कि तुम क्या चाहते हो ? उन्होंने कहा कि हमको एक राज्य दे दीजिए । जीवात्माओं के बगैर राज्य नहीं हो सकता था । तब उन्होंने जीवात्माओं को दे दिया । ये सभी जीवात्माए । जो सभी मण्डलों में हैं । उसी सतपुरूष के देश सतलोक से उतार कर नीचे लाईं गईं । ईश्वर भी वहीं से आए ? ब्रह्म भी वहीं से आए । और पारब्रह्म भी वहीं से आए । सभी जीव वहीं से आए । पूरा मसाला जितना भी कारण का । सूक्ष्म का । लिंग का । स्थूल का । ये सब तथा जिसमें आप रहते हें । यानि पंचभौतिक शरीर । पृथ्वी । जल । वायु । अग्नि । आकाश ये सब मसाले वहीं से आए । सभी जीवात्माओं । रूहों यानि सुरतों का एक ही रास्ता आने का और जाने का है । सभी एक ही रास्ते । शब्द । आवाज । देववाणी से उतार कर लाई गईं । और दूसरा कोई रास्ता है ही नहीं । बहुत युग बीत गए । जीवात्माओं को उतारते उतारते । जब उतारकर ले आए । तो पहला कपड़ा कारण का । दूसरा सूक्ष्म का । तीसरा कपड़ा लिंग का । और चौथा कपड़ा मनुष्य शरीर । पांच तत्वों का । पृथ्वी । जल । अग्नि । वायु और आकाश । इसके ऊपर यानी आँखों के ऊपर स्वर्गलोक है । बैकुण्ठलोक है । यह लिंगतत्व है । स्थूल का नहीं यानी पृथ्वी । जल । अग्नि । वायु और आकाश वहाँ नहीं हैं । दस इन्द्रियाँ । चतुष अन्तःकरण । बुद्धि । चित्त और अहंकार । फिर तीन गुण । सतोगुण । रजोगुण और तमोगुण । इन सत्रह तत्वों का लिंग शरीर है । और वह स्वर्ग बैकुण्ठलोक है । इनके परे नौ तत्वों का शरीर । शब्द । स्पर्श । रूप । रस । गंध फिर मन । बुद्धि । चित्त और अहंकार का सूक्ष्म कपड़ा है । इसके बाद कारण कपड़ा पहनाया गया । जो पांच तत्वों का है । शब्द । स्पर्श । रूप । रस और गंध । इसकी भी हदबंदी है । फिर इसके बाद जीवात्मा । जो दोनों आँखों के बीचोंबीच बैठी है । जब कारण कपड़ा छोड़ दिया । तो शब्द रूप हो जाती है । इतने कपड़ों में बांधकर ये जीवात्मा लाई गई । अब बिना महापुरूषों की दया के वापस अपने घर सतलोक नहीं जा सकती । आने जाने वाला मिलना चाहिए । जो इन कपड़ों को उतार चुका हो । और जिसकी सुरत शब्द रूप हो गई हो । वही इन जीवों को ले जा सकता है । और कोई नहीं ।
** श्री Udit bhargava जी द्वारा मेरे लेख after 10 year साधना इसको देख सकते हैं । पर । comment के रूप में दी गयी ये जानकारी । जो किसी संत मत sant mat की पुस्तक से ली गयी है । उपयोगी होने के कारण प्रकाशित कर रहा हूं । इसमें जो विवरण हैं । वह काफ़ी हद तक ठीक कहा जा सकता है । पर इसमें सत्यता प्रतीकात्मक रूप में है । जो मेरे विचार से दुर्लभ संत मत sant mat ग्यान को न जानने वाले को थोडा सा उलझाती और भृमित सी करती है । तथापि ये जानकारी अन्य धार्मिक लेखों की तुलना में बेहद उपयोगी है । बस इसको पढते समय यही ध्यान रखें कि ये प्रतीकात्मक अधिक है । आपका बहुत बहुत आभार । श्री Udit bhargava जी । राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें