शुक्रवार, जून 24, 2011

हरेक के लिये एक बेहद प्रभावी सरल सहज सत्यपुरुष की स्तुति

हमारे कई साधकों पाठकों मित्रों ने एक ऐसी सहज सरल स्तुति की माँग की । जिससे दीक्षा वाले लोग जिनका ध्यान कठिनाई से लगता है । आसानी से ध्यान लगा सकें ।
तथा जिन लोगों की दीक्षा अभी नहीं हुयी है । वे भी कुछ तो सत्य का बोध कर सके । धर्म में प्रचलित कई चालीसाओं आदि की तरह ये बेहद प्रभावी स्तुति है । आप इसको जीवन में अपना कर देखें । और तुरन्त इसका लाभ महसूस करें । ये स्तुति भाव परमात्मा को ध्यान रखकर करें ।

सत्यनाम सुमिरो मन माँही । जहँवा रजनी वासर नाहीं ।
आदि अंत नहीं धरन अकाशा । पावक पवन न नीर निवासा ।
चन्द सूर तहँवा नहि कोई । प्रात सांझ तहवां नहि दोई ।
कर्म धर्म पुन्य नही पापा । तहवां जपियो अजपा जापा ।
झलमलाट चहुँ दिस उजियारा । वरषे जहाँ अगर की धारा ।
तँह सतगुरु को आसन होई । कोटि माहिं जन पहुँचे कोई ।
दसों दिशा झिलमिल तहाँ छाजा । बाजे तहाँ सु अनहद बाजा ।
तहवां हँसा ध्यान लगावे । बहुरि न जोनी संकट आवे ।
जहवां को सुख वरनि न जाई । सतगुरु मिले तो देय लखाई ।
ज्यों गूँगा को सपना देखो । ऐसो जीवित जन्म को लेखो ।
छन इक ध्यान विदेह समाई । ताकी महिमा वरणि न जायी ।
काया नाम सबै गोहरावे । नाम विदेह विरला कोई पावे ।
जो युग चार रहे कोई कासी । सार शब्द बिन यमपुर वासी ।
नीमसार बद्री पर धामा । गया द्वारका प्राग अस्नाना ।
अङसठ तीरथ भू परकरमा । सार शब्द बिन मिटे न भरमा ।
कँह लग कहों नाम परभाऊ । जो सुमरे जम त्रास नसाऊ ।
सार नाम सतगुरु सों पावे । नाम डोर गहि लोक सिधावे ।
धर्मराय ताको सिर नावे । जो हँसा निःतत्व समाबे ।
सार शब्द विदेह स्वरूपा । निःअक्षर वह रूप अनूपा ।
तत्व प्रकृति भाव सब देहा । सार शब्द निःतत्व विदेहा ।
कहन सुनन को शब्द चौधारा । सार शब्द सों जीव उबारा ।
पुरुष सो नाम सार परवाना । सुमिरन पुरुष सार सहिदाना ।
बिनु रसना के जाप समाई । तासों काल रहे मुरझाई ।
सूच्छम सहज पँथ है पूरा । ता पर चढो रहे जन सूरा ।
नहिं वह शब्द न सुमरन जापा । पूरन वस्तु काल दिखदापा ।
हँस भार तुम्हरे सिर दीन्हा । तुमको कहो शब्द को चीन्हा ।
पदम अनंत पंखुरी जाने । अजपा जाप डोर सो ताने ।
सूच्छम द्वार तहाँ जब दरसे । अगम अगोचर सतपद परसे ।
अंतर शून्य मंह होय परकासा । तहवां आदि पुरुष का वासा ।
ताहि चीन्ह हँसा तंह जायी । आदि सुरति तहं लै पहुँचायी ।
आदि सुरति पुरुष को आही । जीव सोहंगम बोलिये ताही ।
धर्मदास तुम संत सुजाना । परखो सार शब्द निरवाना ।
अजपा जाप हो सहज धुनि । परखि गुरु गम लागिये ।
मन पवन थिर कर शब्द निरखै । करम मनमथ त्यागिये ।
होत धुनि रसना बिना । करमाल बिनु निखारिये ।
शब्द सार विदेह निरखत। अमरलोक सिधारिये ।
शोभा अगम अपार । कोटि भानु शशि रोम इक ।
षोडश रवि छिटकार । एक हँस उजियार तन ।

कोई टिप्पणी नहीं:

Welcome

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।