ऊँचा महल चुनाइया । सुबरन कली ढुलाय । वे मन्दिर खाले पड़े । रहे मसाना जाय ।
ऊँचा मन्दिर मेड़िया । चला कली ढुलाय । एकहि गुरु के नाम बिन । जदि तदि परलय जाय ।
ऊँचा मन्दिर मेड़िया । चला कली ढुलाय । एकहि गुरु के नाम बिन । जदि तदि परलय जाय ।
ऊँचा दीसे धौहरा । भागे चीती पोल । एक गुरु के नाम बिन । जम मारेंगे रोज ।
पाव पलक तो दूर है । मो पे कहा न जाय । ना जानो क्या होयगा । पाव के चौथे भाय ।
मौत बिसारी बाहिरा । अचरज कीया कौन । मन माटी में मिल गया । ज्यों आटा में लौन ।
घर रखवाला बाहिरा । चिड़िया खाई खेत । आधा परवा ऊबरे । चेति सके तो चेत ।
हाड़ जले लकड़ी जले । जले जलवान हार । अजहुँ झोला बहुत है । घर आवे तब जान ।
पकी हुई खेती देख के । गरब किया किसान । अजहुं झोला बहुत है । घर आवे तब जान ।
पाँच तत्व का पूतरा । मानुष धरिया नाम । दिना चार के कारने । फिर फिर रोके ठाम ।
कहा चुनावे मेड़िया । लम्बी भीत उसारि । घर तो साढ़े तीन हाथ । घना तो पौने चारि ।
यह तन काचा कुंभ है । लिया फिरे थे साथ । टपका लागा फुटि गया । कछु न आया हाथ ।
कहा किया हम आयके । कहा करेंगे जाय । इत के भये न ऊत के । चाले मूल गंवाय ।
कुल खोये कुल ऊबरे । कुल राखे कुल जाय । राम निकुल कुल भेटिया । सब कुल गया बिलाय ।
दुनिया के धोखे मुआ । चला कुटुम की कानि । तब कुल की क्या लाज है ।जब ले धरा मसानि ।
दुनिया सेती दोसती । मुआ होत भजन में भंग । एका एकी राम सों । कै साधुन के संग ।
यह तन काचा कुंभ है । यही लिया रहिवास । कबिरा नैन निहारिया । नहिं जीवन की आस ।
यह तन काचा कुंभ हे । चोट चहू दिस खाय । एकहि गुरु के नाम बिन । जदि तदि परलय जाय ।
जंगल ढेरी राख की । उपरि उपरि हरियाय । ते भी होते मानवी । करते रंग रलियाय ।
मलमल खासा पहिनते । खाते नागर पान । टेढ़ा होकर चलते । करते बहुत गुमान ।
महलन माही पौढ़ते । परिमल अंग लगाय । ते सपने दीसे नहीं । देखत गये बिलाय ।
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