ऊजल पहने कापड़ा । पान सुपारी खाय । कबीर गुरू की भक्ति बिन । बांधा जमपुर जाय ।
कुल करनी के कारने । ढिग ही रहिगो राम । कुल काकी लाजि है । जब जमकी धूमधाम ।
कुल करनी के कारने । हंसा गया बिगोय । तब कुल काको लाजि है । चाकिर पांव का होय ।
मैं मेरी तू जानि करे । मेरी मूल बिनास । मेरी पग का पैखड़ा । मेरी गल की फांस ।
ज्यों कोरी रेजा बुने । नीरा आवे छोर । ऐसा लेखा मीच का । दौरि सके तो दौर ।
इत पर धर उत है धरा । बनिजन आये हाथ । करम करीना बेचि के । उठि करि चालो काट ।
जिसको रहना उतघरा । सो क्यों जोड़े मित्र । जैसे पर घर पाहुना । रहे उठाये चित्त ।
मेरा संगी कोई नहीं । सबे स्वारथी लोय । मन परतीत न ऊपजे । जिय विस्वाय न होय ।
मैं भोंरो तोहि बरजिया । बन बन बास न लेय । अटकेगा कहुं बेल में । तड़फ तड़फ जिय देय ।
दीन गंवायो दूनि संग । दुनी न चली साथ । पांच कुल्हाड़ी मारिया । मूरख अपने हाथ ।
तू मति जाने बावरे । मेरा है यह कोय । प्रान पिण्ड सो बंधि रहा । सो नहिं अपना होय ।
या मन गहि जो थिर रहे । गहरी धूनी गाड़ि । चलती बिरिया उठि चला । हस्ती घोड़ा छाड़ि ।
तन सराय मन पाहरू । मनसा उतरी आय । कोई काहू का है नहीं । देखा ठोंकि बजाय ।
डर करनी डर परम गुरु । डर पारस डर सार । डरत रहे सो ऊबरे । गाफिल खाई मार ।
भय से भक्ति करे सब । भय से पूजा होय । भय पारस है जीव को । निरभय होय न कोय ।
भय बिन भाव न ऊपजे । भय बिन होय न प्रीति । जब हिरदे से भय गया,। मिटी सकल रस रीति ।
काल चकृ चाकी चले । बहुत दिवस ओ रात । सुगन अगुन दोउ पाटला। तामें जीव पिसात ।
बारी बारी आपने । चले पियारे मीत । तेरी बारी जीयरा । नियरे आवे नीत ।
एक दिन ऐसा होयगा । कोय काहु का नांहि । घर की नारी को कहे । तन की नारी जांहि ।
बैल गढ़न्ता नर । चूका सींग रू पूँछ । एकहिं गुरु के ज्ञान बिनु । धिक दाढ़ी धिक मूंछ ।
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