अष्टावक्र उवाच - आचक्ष्व शृणु वा तात नानाशास्त्राण्यनेकशः । तथापि न तव स्वास्थ्यं सर्वविस्मरणाद ऋते । 16-1
अष्टावक्र बोले - हे तात ! अनेक प्रकार से । अनेक शास्त्रों को । कह या सुन लेने से भी । बिना सबका विस्मरण किये । तुम्हें शांति नहीं मिलेगी । 1
भोगं कर्म समाधिं वा कुरु विज्ञ तथापि ते । चित्तं निरस्तसर्वाशमत्यर्थं रोचयिष्यति । 16-2
हे विज्ञ ( पुत्र ) ! चाहे तुम । भोगों का भोग करो । कर्मों को करो । चाहे तुम । समाधि को लगाओ । परन्तु सब आशाओं से । रहित होने पर ही । तुम अत्यंत सुख को । प्राप्त कर सकोगे । 2
आयासात्सकलो दुःखी नैनं जानाति कश्चन । अनेनैवोपदेशेन धन्यः प्राप्नोति निर्वृतिम । 16-3
शरीर निर्वाहार्थ ) परिश्रम करने के कारण ही । सभी मनुष्य दुखी हैं । इसको कोई नहीं जानता है । सुकृती ( महा ) पुरुष इसी उपदेश से । परम सुख को प्राप्त होते हैं । 3
व्यापारे खिद्यते यस्तु निमेषोन्मेषयोरपि । तस्यालस्य धुरीणस्य सुखं नन्यस्य कस्यचित । 16-4
जो नेत्रों के ढकने । और खोलने के । व्यापार से । खेद को प्राप्त होता है । उस आलसी पुरुष को ही सुख है । दूसरे किसी को नहीं । 4
अष्टावक्र त्रेता युग के महान आत्मज्ञानी सन्त हुये । जिन्होंने जनक को कुछ ही क्षणों में आत्म साक्षात्कार कराया । आप भी इस दुर्लभ गूढ रहस्य को इस वाणी द्वारा आसानी से जान सकते हैं । इस वाणी को सुनने के लिये नीचे बने नीले रंग के प्लेयर के प्ले > निशान पर क्लिक करें । और लगभग 3-4 सेकेंड का इंतजार करें । गीता वाणी सुनने में आपके इंटरनेट कनेक्शन की स्पीड पर उसकी स्पष्टता निर्भर है । और कम्प्यूटर के स्पीकर की ध्वनि क्षमता पर भी । प्रत्येक वाणी 1 घण्टे से भी अधिक की है । इस प्लेयर में आटोमेटिक ही वाल्यूम 50% यानी आधा होता है । जिसे वाल्यूम लाइन पर क्लिक करके बढा सकते हैं । इस वाणी को आप डाउनलोड भी कर सकते हैं । इसके लिये प्लेयर के अन्त में स्पीकर के निशान के आगे एक कङी का निशान या लेटे हुये 8 जैसे निशान पर क्लिक करेंगे । तो इसकी लिंक बेवसाइट खुल जायेगी । वहाँ डाउनलोड आप्शन पर क्लिक करके आप इस वाणी को अपने कम्प्यूटर में डाउनलोड कर सकते हैं । ये वाणी न सिर्फ़ आपके दिमाग में अब तक घूमते रहे कई प्रश्नों का उत्तर देगी । बल्कि एक मुक्तता का अहसास भी करायेगी । और तब हर कोई अपने को बेहद हल्का और आनन्द युक्त महसूस करेगा ।
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