सतपुरुष के पाँचवे शब्द से उत्पन्न हुआ । काल निरंजन या काल पुरुष या ररंकार शक्ति या राम ही इस सप्त दीप नव खन्ड का मालिक है । जिसके अन्तर्गत यह प्रथ्वी । पाताल । स्वर्गलोक आदि जिन्हें त्रिलोकी कहा जाता है । आते हैं । सतपुरुष के सोलह अंशो में काल निरंजन ही प्रतिकूल स्वभाव वाला था । शेष पन्द्रह सुत । दया । आनन्द । प्रेम आदि गुणों वाले थे । और वे उत्पन्न होने के वाद आनन्दपूर्वक सतपुरुष द्वारा स्थापित अठासी हजार दीपों में से अपने दीप में रहने लगे । यह वह समय था । जब सृष्टि अस्तित्व में नहीं आयी थी । यानी पहली बार भी सृष्टि की शुरुआत नहीं हुयी थी । इसको ठीक तरह से यूँ समझना चाहिये । कि प्रथ्वी । आकाश । स्वर्ग आदि का निर्माण भी नहीं हुआ था । काल निरंजन आनन्द दीप में रहने के स्थान पर एक अलग स्थान पर चला गया । और एक पैर पर खङे होकर तपस्या करने लगा । इसी स्थिति में उसने सत्तर युगों तक तपस्या की । तब उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर सतपुरुष ने उसे अलग से मानसरोवर दीप दे दिया । लेकिन काल निरंजन इससे भी
संतुष्ट नहीं हुआ । और फ़िर से एक पैर पर खङे होकर तपस्या करने लगा । और पूर्ववत ही उसने फ़िर सत्तर युगों तक तपस्या की । तब उसकी तपस्या से सतपुरुष ने उसे तीनों लोक और शून्य का राज्य दे दिया । यानी प्रथ्वी । स्वर्ग । पाताल । और शून्यसत्ता का निर्माण हो गया । ये राज्य सात दीप नवखन्ड में फ़ैला था । यही वो समय या स्थिति थी । जिसको big bang theory कहा जाता है । पर बैग्यानिक जो बात बताते हैं । वह मामूली सही और ज्यादातर गलत है । बिग छोङो । कोई छोटा बेंग भी नहीं हुआ । लेकिन ये प्रथ्वी आदि अस्तित्व में आ गये । और इनमें लगभग उसी तरह बदलाव होने लगा । जैसा कि बैग्यानिक अनुमान लगाते हैं । पर प्रथ्वी किसी भी प्रकार के जन जीवन से एकदम रहित थी । जीव के नाम पर एक छोटा सा कीङा भी नहीं था । वृक्ष भी नहीं थे । अमीबा भी अभी पैदा नहीं हुआ था । और इंसान के बाबा दादा यानी बन्दर या चिम्पेंजी भी नहीं थे । क्योंकि उनके खाने के लिये आम अमरूद के पेङ जो नहीं थे ( हा..हा..हा.) लेकिन इन पर जीवन हो । और उस जीवन के लिये जरूरी
अनुकूलता हो । उसके लिये वायुमंडल आदि में धीरे धीरे वैसे ही परिवर्तन आ रहे थे । जैसा कि बैग्यानिक अनुमान लगाते हैं । काल निरंजन इस सबसे बेफ़िक्र फ़िर तपस्या में जुट गया । और पुनः सत्तर युग तक तपस्या की । दरअसल उसको अपने राज्य के लिये कुछ ऐसी चीजों की आवश्यकता थी । जिससे उसकी इच्छानुसार सृष्टि का निर्माण हो सके । तब सतपुरुष ने उसकी इच्छा जानकर सृष्टि निर्माण के अगले चरण हेतु अपने प्रिय अंश कूर्म को सृष्टि के लिये आवश्यक सामान के साथ भेजा ।
ये सामान कूर्म के उदर में था । कूर्म अति सज्जन स्वभाव के थे । जबकि काल निरंजन तीव्र स्वभाव का था । वह कूर्म को खाली हाथ देखकर चिङ गया । और उन पर प्रहार किया । इस प्रहार से कूर्म का पेट फ़ट गया और उनके उदर से सर्वप्रथम पवन निकले । शीस से तीन गुण सत रज तम निकले । पाँच तत्व । सूर्य चन्द्रमा तारे आदि निकले । यानी तीन लोक और शून्य की सत्ता में सृष्टि की कार्यवाही आगे बङने लगी । वायु सूर्य चन्द्रमा और पाँच तत्व एक्टिव होकर कार्य करने लगे । और प्रथ्वी आदि स्थानों पर जीवन के लिये परिस्थितियाँ तैयार होने लगी । परन्तु प्रथ्वी पर अभी भी किसी प्रकार का जीवन नहीं था । क्योंकि " अमीबा भगवान " का अवतार नहीं हुआ था और पेङ भी अभी नहीं थे । जो बन्दर मामा जी पहुँच जाते । ( हा ..हा..हा.।) खैर । चिन्ता न करें । जब इतना इंतजाम हो गया । तो आगे भी भगवान सुनेगा । देने वाले श्री भगवान । अब इस सूने राज्य से काल निरंजन का भला क्या भला होता । वह बेकरारी से उस चीज के इंतजार में था । जो सृष्टि के लिये परम आवश्यक थी ?
क्या थी ये चीज ?
लिहाजा काल निरंजन फ़िर से तपस्या करने लगा । और युगों तक तपस्या करता रहा । उधर सृष्टि स्वतः सूर्य जल वायु आदि की क्रिया से अनुकूलता की और तेजी से बङ रही थी । क्योंकि प्रदूषण फ़ैलाने वाले अमेरिका और उसके दोस्तों का जन्म नहीं हुआ था । खैर साहब । अबकी बार सतपुरुष ने काल निरंजन की इच्छा जानकर अष्टांगी कन्या यानी आध्या शक्ति को उसके पास जीव बीज " सोहंग " को लेकर भेजा । यही वो चीज थी । जिसका निरंजन को बेकरारी से इंतजार था । लेकिन ये निरंजन अजीव स्वभाव का था । अष्टांगी ने इसको भैया का सम्बोधन
किया । और सतपुरुष की भेंट बताने ही वाली थी । कि ये उसको खा गया । तब उस स्त्री ने जो उस समय एक मात्र " एक " ही थी । उसके उदर के अन्दर से सतपुरुष का ध्यान किया । और सतपुरुष के आदेश से उनका ध्यानकर बाहर निकल आयी । अष्टांगी ने जीव बीज निरंजन को सोंप दिया । काल निरंजन में उस सुन्दर अष्टांगी कन्या को देखकर " काम " जाग गया । और उसने अष्टांगी से रति का प्रस्ताव किया । जिसे थोङी ना नुकुर के बाद अष्टांगी ने मान लिया । वजह दो थी । एक तो वह निरंजन से भयभीत थी । दूसरे वह स्वयं भी रति को इच्छुक हो उठी थी । दोनों वहीं लम्बे समय तक रति करते रहे । जिसके परिणाम स्वरूप । ब्रह्मा । विष्णु । शंकर । का जन्म हुआ । बस उसके कुछ समय बाद ही जब ये ब्रह्मा विष्णु शंकर बहुत छोटे बालक थे । निरंजन अष्टांगी को आगे की सृष्टि आदि
करने के बारे में बताकर । शून्य में जाकर अदृश्य हो गया । और आज तक अदृश्य है । यही निरंजन या ररंकार शक्ति राम कृष्ण के रूप में दो बङे अवतार धारण करती है । और तब इसके सहयोग में अष्टांगी सीता । राधा । के रूप में अवतार लेती है । जब ये तीनों बालक कुछ बङे हो गये तो इन चारों ने मिलकर " सृष्टि बीज " से सृष्टि का निर्माण किया । अष्टांगी ने अपने अंश से कुछ कन्यायें गुपचुप उत्पन्नकर समुद्र में छुपा दीं । जो अष्टांगी के प्लान के अनुसार नाटकीय तरीके से इन तीनों किशोरों को मिल गयीं । जिसे उन्होंने माँ के कहने से पत्नी मान लिया । ये तीन कन्यायें । सावित्री । लक्ष्मी । पार्वती थी । इस तरह सृष्टि की शुरुआत हो गयी । इस सम्बन्ध में और जानने के लिये कुछ अन्य लेख भी पढने होंगे । जो ब्लाग में प्रकाशित हो चुके हैं । " जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । "
विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Welcome
- mukta mandla
- Agra, uttar pradesh, India
- भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें