गुरुवार, जुलाई 15, 2010

हमारी बेङियाँ....?

एक राज्य में सभी लोग शान्तिपूर्वक रहते थे । अचानक ऐसा हुआ कि राज्य में भारी बाङ आ गयी । चारों तरफ़ हाहाकार मच गया । अफ़रातफ़री में लोग सुरक्षित स्थानों की ओर भागने लगे । उसी राज्य में मनसुख लाला और धर्मदास नामक दो व्यक्ति रहते थे । ये दोनों एकदम विपरीत स्वभाव के थे । मनसुख लाला जहाँ सिर्फ़ अपने बारे में ही सोचता था । धर्मदास खुद पर संकट होने के बाबजूद भी दूसरों की सहायता हेतु तत्पर रहता था । बाङ का संकट आते ही धर्मदास ने एक बङी नाव का इंतजाम किया । और कील आदि की सहायता से नाव में अनेकों गोल कङे लगाकर उनमें रस्सियाँ बाँध दी । मनसुख लाला ने कोई इंतजाम नहीं किया । धीरे धीरे बाङ घरों में घुसने लगी । चारों तरफ़ पानी ही पानी नजर आने लगा । धर्मदास ने अपनी नाव पानी में उतार दी और बहते हुये । डूबते हुये लोगों को कङों में बँधी रस्सी के सहारे नाव पर बुलाने लगा । इसके विपरीत मनसुख लाला ने एक पेङ की पिंडी ( मोटे गोल लकङी के लठ्ठे को पिंडी कहते है । ये पानी में तैरती है । ) ले ली । और उस पर अकेला बैठकर सुरक्षित स्थान की तलाश में जाने लगा । यदि कोई डूबता हुआ इंसान उसकी पिंडी का सहारा भी लेने की कोशिश करता । तो मनसुख लाला उसको धक्का मार देता । धर्मदास नाव को घुमाता हुआ अधिकाधिक लोगों को बचाने की कोशिश करने लगा । दोनों विपरीत स्वभाव वाले पानी में थे । होते होते मनसुख लाला की पिंडी एक तेज भंवर में फ़ँसकर पलट गयी । मनसुख लाला भंवर में डूबने लगा । और जो पिंडी उसे पानी से बचा रही थी । वही भंवर में फ़ँसकर उसको दबाती हुयी डुबोने लगी । मनसुख लाला डूब गया । उधर धर्मदास ने खुद को बचाने के साथ ही अनेको लोगों को उस आपदा से बचाया ।
श्री महाराज जी कहते हैं । इसी तरह संसार में विभिन्न आपदाओं की बाङ आयी हुयी है । जिनमें फ़ँसकर जीव त्राहि त्राहि कर रहा है । ये अग्यान से भ्रमित और माया से मोहित जीव प्रतिक्षण काल के गाल में जा रहा है । संतजन अपनी ग्यानरूपी नौका में बँधी रस्सी पकङाकर इस कठिन दारुण भवसागर से उबारने में उसकी मदद करते हैं । अन्यथा ये दिन प्रतिदिन तेजी से मृत्यु के मुख में जा रहा है । और मनसुख लाला जैसे लोग खुद भी डूबते हैं और दूसरों को भी डुबोते हैं । परहित सरस धर्म नहीं भाई । परपीङा सम नहीं अधिकाई ।
* एक अजीव शहर था । हर शहर की तरह यहाँ पर पर भी अमीर । मध्यम और गरीब लोग रहते थे । अजीव इसलिये था । कि लोगों ने अपनी हैसियत के अनुसार शोभा मानते हुये । अमीर लोगों ने हाथ पैरों में सोने की बेङियाँ । मध्यम लोगों ने चाँदी की बेङियाँ और निम्न या गरीब लोगों ने लोहे की बेङियाँ अपनी मर्जी से ही धारण कर रखी थी । हाँलाकि वे इससे बहुत कष्ट पाते थे पर फ़िर भी अपने मन में आनन्दित महसूस करते थे । एक दिन ऐसा हुआ कि घूमते घूमते एक ग्यानी उनके शहर में आ पहुँचा । उसने देखा कि कितने अजीब लोग हैं । अपने लिये कष्ट का इंतजाम खुद ही कर रखा है । उसने इन्हें सही रास्ता दिखाने की सोची । उसने एक समझदार आदमी को चुना और एकांत में ले जाकर बोला । जिन बेङियों से तुम शोभा और जूठा आनन्द महसूस करते हो । येवास्तव में कष्टदायक है । इनके कटते ही तुम असली आनन्द को जानोगे । वह आदमी क्योंकि विचारशील था । उसने देखा कि ये कहने वाले के शरीर पर एक भी बेङी नही थी । उसने कहा कि ठीक है । पहले तुम मेरे हाथों की बेङी काटो । तब देखता हूँ कि तुम्हारी बात में कितनी सत्यता है । ग्यानी एक पत्थर पर हाथ रखकर उसकी छेनी हथोङे से बेङियाँ काटने लगा । इससे उस आदमी को कुछ चोट भी लगी । और कष्ट भी हुआ । वह क्रोधित होकर बोला । तुम तो कहते थे । कि बेङियाँ कटने से आनन्द होगा । पर मुझे तो भयंकर परेशानी हो रही है । ग्यानी ने कहा । कुछ देर ठहरो । तुम्हारी बेङियाँ काफ़ी पुरानी हो चुकी हैं । और तुम्हारा शरीर भी उसी अनुसार ढल चुका है । इसलिये परेशानी हो रही है । खैर । थोङी तकलीफ़ हुयी । उसके बाद एक हाथ की बेङी कट गयी । ग्यानी ने कहा । कि अब तुम मुक्त रूप से इस हाथ को मेरी तरह घुमा फ़िराकर देखो । उस आदमी ने वैसा ही किया । पर क्योंकि काफ़ी समय बाद बेङी मुक्त हुआ था । शुरु में उसको हाथ को घुमाने में तकलीफ़ महसूस हुयी । मगर थोङी ही देर में आनन्द आने लगा । वह बोला शीघ्रता से तुम मेरी सारी बेङियाँ काट दो । बेङी से मुक्त होने में तो वाकई आनन्द है । अन्य बेङियाँ कटने में भी थोङी परेशानी हुयी । पर उस आदमी को अब अनुभव हो चुका था कि बेङी कटने में परेशानी होती ही है । लेकिन पूरी बेङियाँ कटते ही वह एक नया आनन्द महसूस करने लगा । उसने आनन्दित होकर कहा कि आप बहुत अच्छे हैं । आपने मुझे नया आनन्द और मुक्त अवस्था दी है । कृपया मेरे पूरे घर की बेङियाँ काट दो । ग्यानी ने कहा कि ये तुम्हारी गलतफ़हमी हैं । कोई भी बेङियों से मुक्त नहीं होना चाहता । वे उसी अवस्था में सुख ( मगर झूठा ) मानते हैं । आदमी ने कहा । ऐसा कैसे हो सकता है । मैं उनको जाकर अपना हाल बताऊँगा । इस पर ग्यानी सिर्फ़ मुस्कराया । वह आदमी दौङकर अपने घर पहुँचा और बोला कि मुक्त होने में आनन्द है । हमारे यहाँ एक बेङी काटने वाला आया है । तुम सव शीघ्रता से बेङियाँ कटवा लो । और मेरी तरह आनन्द महसूस करो । इस पर अधिकांश लोगों ने उसे झिङक दिया । मूर्ख है तू । अब तेरे में कोई शोभा नजर नहीं आती । हमें देख हम कितने अच्छे लगते हैं । तू अपने इस ग्यानी के साथ अन्यत्र चला जा । ग्यानी मुक्त आदमी को देखकर मुस्कराया ?
* वास्तव में संसार काम । क्रोध । लोभ । मोह । तेरा । मेरा । अमीर । गरीब । ऊँच । नीच आदि हजारों विकार बेङियों से बँधा हुआ है । सोचो ये बेङियाँ किसने डालीं हैं ? खुद हमने । आवरण पर आवरण चङाते हुये हम अपने ही जाल में फ़ँसते चले जा रहे हैं । और अगर कोई हमें रास्ता दिखाने का प्रयास करता है । तो हम उसका उपहास करते हैं । हेय दृष्टि से देखते हैं । नंगा आने वाला । नंगा जाने वाला । इंसान जाने किस बात पर गर्वित है ? कौन सी ऐसी सम्पदा है । जो तुम्हारे लिये स्थायी है । अगर तुम पूरे विश्व के राजा भी हो जाओ । तो भी उतना ही उपयोग कर सकोगे । जितना कि तुम्हारे लिये तय है । धन । यौवन ।स्त्री । पुत्र । परिवार । हाथी । घोङे कितने ही जतन से संभालो । एक दिन सब मिट्टी में मिल जाना है । पुराने राजाओं के मजबूत किले आज भी खङें हैं । पर कहाँ है । वे राजा ? और कहाँ हैं । उनके वारिस ? आदमी अपनी सात । सत्तर पीङियों का इंतजाम करता है । और अंत में झूठे अहम में नरक में जाता है । पालने वाला भगवान है या आप ? क्या आप अपने परिजनों का भाग्य बदल सकते हैं ? हरगिज नहीं । तो फ़िर झूठी दौलत कमाने के स्थान पर स्थायी आराम देने वाले ग्यान को पकङों । कोई ना काहू सुख दुख कर दाता । निज कर कर्म भोग सब भ्राता । * सदा न रहेगा जमाना किसी का । नही चाहिये दिल दुखाना किसी का । आयेगा बुलाबा तो जाना पङेगा । आखिर में सर को झुकाना पङेगा । वहाँ न चलेगा बहाना किसी का ।नही चाहिये दिल दुखाना किसी का । शौक तुम्हारी रह जायेगी । दौलत तुम्हारी रह जायेगी । नही साथ जाता खजाना किसी का । नही चाहिये दिल दुखाना किसी का । पहले तो अपने आप को संभालो । नहीं है बुराई औरों में निकालो । बुरा है । बुरा जग में बताना किसी को । नही चाहिये दिल दुखाना किसी का । ये तो जहाँ में लगा ही रहेगा । आना किसी का । और जाना किसी का । नही चाहिये दिल दुखाना किसी का । सदा न रहेगा जमाना किसी का ।
सदा न रहेगा जमाना किसी का । नही चाहिये दिल दुखाना किसी का ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।