शुक्रवार, जून 24, 2011

अनल पक्षी का रहस्य

कबीर साहब बोले - हे धर्मदास ! गुरु की महान कृपा से मनुष्य साधु कहलाता है । संसार से विरक्त मनुष्य के लिये गुरुकृपा से बढकर कुछ भी नहीं है । फ़िर ऐसा साधु अनल पक्षी के समान होकर सत्यलोक को जाता है ।
हे धर्मदास ! तुम इस अनल पक्षी के रहस्य उपदेश को सुनो । अनल पक्षी निरंतर आकाश में ही विचरण करता रहता है । और उसका अण्डे से उत्पन्न बच्चा भी स्वतः जन्म लेकर वापस अपने घर को लौट जाता है । प्रथ्वी पर बिलकुल नहीं उतरता ।
अनल पक्षी जो सदैव आकाश में ही रहता है । और केवल दिन रात पवन यानी हवा की ही आशा करता है । अनल पक्षी की रति क्रिया या मैथुन केवल दृष्टि से होता है । यानी वे जब एक दूसरे से मिलते हैं । तो प्रेमपूर्वक एक दूसरे को रति भावना की गहन दृष्टि से देखते हैं । उनकी इस रति क्रिया विधि से मादा पक्षी को गर्भ ठहर जाता है ।
हे धर्मदास ! फ़िर कुछ समय बाद वह मादा अनल पक्षी अण्डा देती है । पर उनके निरन्तर उङने के कारण अण्डा के ठहरने का कोई आधार तो होता नहीं ।

वहाँ तो बस केवल निराधार शून्य 0 ही शून्य 0 है । तब आधारहीन होने के कारण उसका अण्डा धरती की ओर गिरने लगता है । और नीचे रास्ते में आते आते ही पूरी तरह पककर तैयार हो जाता है । और रास्ते में ही वह अण्डा फ़ूटकर शिशु बाहर निकल आता है । और नीचे गिरते ही गिरते रास्ते में वह अनल पक्षी आँखे खोल लेता है । तथा कुछ ही देर में उसके पंख उङने लायक हो जाते हैं ।
नीचे गिरते हुये जब वह प्रथ्वी के निकट आता है । तब उसे स्वतः पता लग जाता है कि यह प्रथ्वी मेरे रहने का स्थान नहीं है । तब वह अनल पक्षी अपनी सुरति के सहारे वापस अंतरिक्ष की ओर लौटने लगता है । जहाँ पर उसके माता पिता का निवास है । अनल पक्षी कभी भी अपने बच्चे को लेने प्रथ्वी की ओर नहीं आते । बल्कि उनका बच्चा स्वयँ ही पहचान लेता है कि यह प्रथ्वी मेरा घर नहीं है । और वापस पलटकर अपने असली घर की ओर चला जाता है ।

हे धर्मदास ! इस संसार में बहुत से पक्षी रहते हैं । परन्तु वे अनल पक्षी के समान गुणवान नहीं होते । ऐसे ही कुछ ही विरले जीव है । जो सदगुरु के ग्यान अमृत को पहचानते हैं ।
निर्धनियाँ सब संसार है । धनवन्ता नहिं कोय । धनवन्ता ताही कहो । जा ते नाम रतन धन होय ।
हे धर्मदास ! इसी अनल पक्षी की तरह जो जीव ग्यान युक्त होकर होश में आ जाता है । तो वह इस काल कल्पना लोक को पार करके सत्यलोक मुक्तिधाम में चला जाता है ।
हे धर्मदास ! जो मनुष्य जीव इस संसार के सभी आधारों को त्यागकर एक सदगुरु का आधार और उनके नाम से विश्वासपूर्वक लगन लगाये रहता है । और सब प्रकार का अभिमान त्यागकर रात दिन गुरु चरणों के अधीन रहता हुआ दास भाव से उनकी सेवा में लगा रहता है । तथा धन घर और परिवार आदि का मोह नहीं करता ।
पुत्र स्त्री तथा समस्त विषयों को संसार का ही सम्बन्ध मानकर गुरु चरणों को ह्रदय से पकङे रहता है । ताकि चाहकर भी अलग न हो । इस प्रकार जो मनुष्य साधु संत गुरु भक्ति के आचरण में लीन रहता है । सदगुरु की कृपा से उसके जन्म मरण रूपी अत्यन्त दुखदायी कष्ट का नाश हो जाता है । और वह साधु सत्यलोक को प्राप्त होता है ।
साधक या भक्त मनुष्य मन वचन कर्म से पवित्र होकर सदगुरु का ध्यान करे । और सदगुरु की आग्यानुसार सावधान होकर चले । तब सदगुरु उसे इस जङ देह से परे नाम विदेह जो शाश्वत सत्य है । उसका साक्षात्कार करा के सहज मुक्ति प्रदान करते हैं ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।