शुक्रवार, अप्रैल 06, 2012

प्रश्न है कि जीवन में आपका ध्येय क्या हो ?


आप इसलिए है । क्योंकि आपके माता पिता ने आपको जन्म दिया है । और आप भारत के ही नहीं । विश्व की सम्पूर्ण मानवता के । शताब्दियों के विकास का परिणाम हैं । आप किसी असाधारण अनूठेपन से नहीं जनमें हैं । बल्कि आपके साथ पंरपरा की पूरी पृष्ठ भूमि है । आप हिन्दू या मुस्लिम हैं । आप पर्यावरण । वातावरण । खान पान । सामाजिक । और सांस्कृतिक परिवेशों । और आर्थिक दबावों से उपजे हैं । आप अनेकों शताब्दियों का । समय का । द्वंद्वों का । दर्दों का । खुशियों का । और लगाव । चाव का परिणाम हैं । आपमें से हर कोई जब यह कहता है कि - वह एक आत्मा है । जब आप कहते हैं कि - आप शुद्ध ब्राह्मण हैं । तो आप केवल परंपरा का । किसी संकल्पना का । किसी संस्कृति । भारत की विरासत । भारत की सदियों से चली आ रही विरासत । का ही अनुकरण कर रहे होते हैं ।
प्रश्न है कि - जीवन में आपका ध्येय क्या हो ? तो पहले तो आपको अपनी पृष्ठ भूमि को समझना होगा । यदि आप परम्परा । संस्कृति को । समूचे परिदृश्य को । नहीं समझते । तो आप अपनी पृष्ठ भूमि से उपजे किसी आयडिये । मिथ्या अर्थ को मान लेंगें । और उसे ही अपने जीवन का ध्येय कहने लगेंगे । माना कि आप हिन्दू हैं । और हिन्दू संस्कृति में पले बढ़े हैं । तो आप हिन्दू वाद से उपजे किसी सिद्धांत या भावना को चुन लेंगे । और उसे अपने जीवन का ध्येय बना लेंगे । लेकिन क्या आप किसी अन्य हिन्दू से अलग । पूरी तरह अलग तरह से सोच सकते हैं ? यह जानने के लिए कि - हमारे अंतर्तम की क्या संभावनाएं । या हमारा अंतर्तम क्या गुहार लगा रहा है । क्या कह रहा है ? यह जानने के लिए किसी व्यक्ति को इन सभी बाहरी दबावों से । बाहरी दशाओं से । मुक्त होना ही होगा । यदि मैं किसी चीज की जड़ तक जाना चाहता हूं । तो मुझे यह सब खरपतवार या व्यर्थ की चीजें हटानी होंगी । जिसका

मतलब है । मुझे हिन्दू । मुसलमान । सिख । ईसाई होने से हटना होगा । और यहां भय भी नहीं होना चाहिए । ना ही कोई महत्वाकांक्षा । ना ही कोई चाह । तब मैं कहीं गहरे तक पैठ सकता हूं । और जान सकता हूं कि - हकीकत में यथार्थ संभावना जनक, या सार्थक क्या है । लेकिन इन सबको हटाये बिना - मैं जीवन में सार्थक क्या है ? इसका अंदाजा नहीं लगा सकता । ऐसा करना मुझे केवल भृम और दार्शनिक अटकल बाजियों में ही ले जायेगा ।
तो यह सब कैसे होगा ? पहले तो हमें सदियों से जमी धूल को हटाना होगा । जो कि बहुत आसान नहीं है । इसके लिए गहरी अंतर दृष्टि की जरूरत है । इसमें आपकी गहरी रूचि होनी चाहिए । संस्कारों का निर्मूलन । परंपराओं । अंधविश्वासों । सांस्कृतिक प्रभावों । की धूल को हटाने के लिए । खुद को । अपने आपको समझने की आवश्यकता होती है । ना कि किताबों से । या किसी शिक्षक से सीखने की । यही ध्यान है ।
जब मन अपने आपको सारे अतीत की धूल से साफ कर लेता है । मुक्त कर लेता है । तब आप अपने अस्तित्व की सार्थकता के बारे में बात कर सकते हैं । आपने यह प्रश्न किया है । तो अब इस पर आगे बढ़ें । तब तक लगे रहें । जबकि यह ना जान लें कि - क्या कोई ऐसी किसी वास्तविक । मौलिक । अभृष्ट चीज है भी ? यह ना कहें कि - हां ! वाकई ऐस कुछ है । या ऐसा कुछ नहीं होता । बस इस पर काम करना जारी रखें । तलाशने । पाने । जानने की कोशिश ना करें । क्योंकि आप जान नहीं पायेंगे । एक ऐसा मन जो भृष्ट है । वो उस चीज को कैसे जान सकता है ? जो कि शुद्ध है । भृष्ट नहीं है । क्या मन खुद को साफ शुद्ध कर सकता है ? हां कर सकता है । और यदि मन अपने 


आपको शुद्ध साफ कर सकता है । तब आप देख सकते हैं । तब आप जान सकते हैं । पता लगा सकते हैं । मन का परिष्करण शुद्धि करण ध्यान है ।
प्रश्‍़न - मेरे जैसा आम आदमी ज्यादातर अपनी तात्कालिक समस्याओं जैसे अभाव । बेरोजगारी । बीमारी । द्वंद्व आदि में ही घिरा रहता है । तो जीवन की गहरे मुद्दों की ओर - मैं कैसे ध्यान दे सकता हूं ? हम सभी लोग आपदाओं से तत्कालिक राहत पाने के उपाय ढूंढते रहते हैं ।
उत्‍तर - हम सभी अपनी समस्याओं के त्वरित समाधान चाहते हैं । हम सभी आम जन हैं । भले ही हम सामाजिक या धार्मिक रूप से कितने ही उच्च पद पर आसीन हों । हमारी रोजाना की आम जिन्दगी में यही छोटी छोटी परेशानियां रहती हैं - जलन । गुस्सा । हमें कोई प्यार नहीं करता । इस बात का दुख । और अगर प्यार किया जा रहा है । तो उसका अपार आनन्द । यदि आप जीवन की इन छोटी छोटी चीजों को समझ सकें । तो आप इनमें अपने दिल दिमाग के काम करने के ढंग को देख सकेंगें । यह मुद्दा नहीं है कि - आप गृहिणी हैं । और आपको आजीवन दिन में तीन बार खाना बनाना है । पति की दासता में रहना । या पति हैं । तो पत्नी की गुलामी करनी है ।
खुशी । गम । विपत्तियों । आशा । निराशा के इन संबंधों को यदि आप बहुत ही सतही स्तर से शुरू करें । तो यदि आप इनका अवलोकन करते हैं । देखते हैं । धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करते हुए । बिना बढ़ाई या निंदा करते हुए । सचेत रहते हुए । बिना कोई फैसला किये । तो आपको मन समस्या में गहरे और गहरे पैठता जाता है । लेकिन यदि आप किसी समस्या विशेष से निजात पाने के पहलू से ही सरोकार रखते हैं । तो आपका मन बहुत ही सतही स्तर पर बना रहता है ।
ईर्ष्या या जलन की समस्या को ही लें । क्योंकि हमारा समाज ईर्ष्या पर ही आधारित है । ईर्ष्या है - अर्जित करना ।

लोभ । आपके पास कुछ है । मेरे पास नहीं है । आप कुछ हैं । मैं कुछ भी नहीं हूं । और मैं कुछ होने के लिए आपसे प्रतिस्पर्धा करता हूं । आपके पास अधिक ज्ञान है । अधिक धन दौलत है । अधिक अनुभव है । मेरे पास नहीं है । तो इस प्रकार यह चिर स्थायी संघर्ष बना रहता है । आप हमेशा आगे ही आगे बढ़ते चले जाते हैं । और मैं हमेशा नीचे की ओर धंसता गिरता चला जाता हूं । आप गुरू हैं । और मैं शिष्य हूं । या अनुयायी हूं । और आपके और मेरे बीच गहरी खाई है । आप हमेशा आगे हैं । और मैं हमेशा पीछे । यदि हम देख सकें । तो इस सभी संघर्षों के । इन सभी कोशिशों के । इन सभी दुख पीड़ाओं के । इन छोटी मोटी बीमारियों के । और रोजाना की अन्य कई छोटी छोटी बातों के । असंख्य निहितार्थ हैं ।
आपको वेद । पुराणों । किताबों को पढ़ने की कतई आवश्यकता नहीं है । आप इन सबको एक तरफ रख दें । इनका कोई महत्व नहीं हैं ? महत्वपूर्ण यह बात है कि - आप अपने जीवन की इन छोटी छोटी बातों को उनकी वास्तविकता में देखें । उनसे सीधे सीधे साक्षात्कार करें । तो यही चीजें आपको अपने अंतर निहित तथ्यों से भिन्न रूप से साक्षात्कार करायेंगी ।
आखिरकार जब आप किसी वृक्ष का सौन्दर्य देखते हैं । उड़ती हुई चिडि़या देखते हैं । सूर्यास्त या लहराता हुआ जल देखते हैं । तो ये सब आपको बहुत कुछ बताते हैं । और जब आप जीवन की कुरूप चीजें देखें । धूल । गंदगी । निराशा । अत्याचार । भय को  तो ये सब भी विचार की मूलभूत प्रक्रिया से परिचित कराते हैं । यदि मन केवल पलायन से ही सरोकार रखता है । किसी राम बाण उपाय की तलाश में रहता है । सभी सम्बंधों के अन्वेषण से बचना चाहता है । तो हम इन सबके प्रति कदापि सचेत नहीं हो सकते । दुर्भाग्य से हमारे पास धैर्य नहीं है । हम त्वरित जवाब चाहते है । समाधान चाहते हैं । हमारा मन समस्या के प्रति बहुत ही बेसब्र है । अधैर्य पूर्ण है ।
लेकिन यदि मन समस्या का अवलोकन करने में सक्षम हो सके । उससे दूर ना भागे । उसके साथ जी सके । तब यही समस्या उसके सामने अपने सारे अदभुत गुण धर्मों को खोलती चली जायेगी ।  मन समस्या की गहराई तक जा सकेगा । तो मन कोई ऐसी चीज नहीं रह जायेगा । जो परिस्थितियों । समस्याओं । विपत्तियों द्वारा परेशान हो जाये । तब मन जल से आपूरित एक शांत स्निग्ध ताल की तरह हो जायेगा । और केवल ऐसा ही मन निश्चलता और शांति में सक्षम हो सकता है ।
भीतर अचेतन में अतीत का जबरदस्त जोर रहता है । जो आपको एक विशेष दिशा में धकेलता है । अब कोई कैसे इस सब को एकबारगी ही पोंछ दे । कैसे अचेतन से अतीत को तुरन्त ही साफ किया जाये ? विश्लेषक सोचता है कि - विश्लेषण द्वारा । जाँच पड़ताल करके । इसके घटकों को तलाश करके । स्वीकार करके । या सपनों की व्याख्या इत्यादि करके । अचेतन को थोड़ा थोड़ा करके । टुकड़ों में । या यहां तक कि - पूरी तरह साफ किया जा सकता है । ताकि हम कम से कम सामान्य आदमी रहें । ताकि हम अपने आपको निवर्तमान माहौल के हिसाब के अनुकूल बना सकें । लेकिन विश्लेषण में सदैव एक विश्लेषण कर्ता होता है । और एक विश्लेषण । या परिणाम । एक अवलोकन कर्ता जो कि अवलोकन की जाने वाली चीजों की व्याख्या करता है । यह ही द्वैत है । जो कि द्वंद्व का स्रोत है ।
तो अचेतन का विश्लेषण मात्र कहीं नहीं पहुंचा पाता । हो सकता है कि - यह हमारा पागलपन कम करे । अपनी पत्नि या पड़ोसी के प्रति कुछ विनमृ बना दे । या इसी तरह की कुछ बातें । लेकिन ये वो चीज नहीं । जिस बारे में हम बात कर रहे हैं । हम देखते हैं कि - विश्लेषण प्रक्रिया जिसमें कि समय । व्याख्या । और विचारों की सक्रियता शामिल है । एक अवलोकन कर्ता के रूप में । जो कि किसी चीज का विश्लेषण कर देख रहा है । यह सब अचेतन को मुक्त नहीं करता । इसलिए मैं विश्लेषण प्रक्रिया को पूरी तरह से अस्वीकार करता हूँ । जिस क्षण मैं यह तथ्य देखता हूं कि - विश्लेषण किन्हीं भी परिस्थितियों में अचेतन का बोझ नहीं हटा सकता । मैं विश्लेषण से बाहर हो जाता हूँ । मैं अब विश्लेषण नहीं करता । तो क्या होता है ? क्योंकि अब कोई भी विश्लेषण कर्ता उस चीज से अलग नहीं है । जिसका कि विश्लेषण किया जा रहा है । वह वही चीज है । वो उससे ( विश्लेषण से ) भिन्न कोई अस्तित्व नहीं है । तब कोई भी देख सकता है कि - अचेतन बहुत ही कम महत्व का है । जे. कृष्णमूर्ति

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।