
मेरी तरह चालीस साल के बूढे ( 40 year old ) बस अपनी जिंदगी को पच्चीस तीस बरस पीछे ले जाँय । आ हा हा..छोटे शहर । कम आवादी । गरीब अमीर सबके पास बङे बङे मकान । मकान के आगे । उससे भी बङा चबूतरा । जितने में बनता है । आज पूरा मकान ? चबूतरे पर खङे एक या दो विशाल नीम आदि के पेङ । न t .v . । न बिजली । दरवाजे पर बिछी चार छह चारपाइयों पर मजे से हँकती हुयी गप्पें । this is my india..i love my india . तभी कुछ लोगों को प्यास महसूस होती है । और घर के पप्पू गप्पू तुरन्त कुँआ से ताजा ठंडा पानी निकालकर पिलाते हैं । निसंदेह बहुत लोगों को यह सब याद होगा । बू ..हू..हू.. जिस तरह मरने से पूर्व मरने वाले को अपना सब किया धरा याद आ जाता है । और उस समय हाथ जोङ जोङकर वह उन लोगों से स्वतः माफ़ी माँगता है ।जिनके साथ कभी उसने भारी ज्यादती की थी । ठीक वैसे ही आज मुझे कुँआ ..तालाब ..पोखर..झील..सब याद आ रहें है । जिनके न होने से आज हम प्रलय के द्वार पर आकर खङे हो गये । प्रलय का काउंटडाउन शुरु हो चुका है । लेकिन प्रलय का कुँआ तालाब या समर्सिबल पम्प से क्या ताल्लुक ? आइये विचार करते हैं । 2014 to 2015 के आसपास होने बाली प्रलय के मुख्य कारणों में से कुँओं तालाब का न होना । और समर या जेट पम्प का बहुत होना भी मुख्य भूमिका निभाने जा रहा है । " ये प्रलय जगह जगह धरती के चटखने और विशाल मात्रा में जहरीली गैसों के रिसाव से होगी । ये गैसे निसंदेह " मानवीय अत्याचार से क्रुद्ध " देवी प्रथ्वी के गर्भ से एक विनाशकारी जलजले के रूप में आयेंगी । अब जरा विचार करें ऐसा होगा क्यों ? प्रथ्वी के आंतरिक हिस्सों में बैलेंस बनाये रखने के लिये । उसके गर्भ में खौलते लावे की तपन शान्त करने के लिये विशाल मात्रा में उस पानी की आवश्यकता होती है । जो विभिन्न गढ्ढों ..तालावों..पोखरों कुओं आदि के माध्यम से संचित होता था । पहले के समय में अधिकतर कच्ची भूमि भी इसमें भारी सहयोग करती थी । आज यदि गिने चुने पार्क जैसी जगहों को छोङ दें । तो हर तरफ़ पक्की जमीन का बोलबाला हैं । फ़ोर वे 8 वे जैसे पूरी दुनिया में फ़ैली सङकें । कंक्रीट के जंगलों की तरह चारों और फ़ैले अनगिनत पक्के भवन । कहने का आशय ये है । कि कच्ची जमीन और मिट्टी आज दुर्लभ होती जा रही है । लगभग पूरी प्रथ्वी में घर घर में लगे समर्सिबल पम्प बेहद तेजी से प्रथ्वी के स्रोतों से बचा खुचा पानी समाप्त करते जा रहें हैं । और इस्तेमाल के बाद ये पानी पक्की नालियों नालों और फ़िर नदी नहरों के माध्यम से समुद्र में चला जाता है । इस तरह प्रथ्वी का एक बङा हिस्सा जाने कब से प्यासा है । और हम उसकी प्यास बुझाने के स्थान पर उसका बचा खुचा पानी भी तेजी से छीन रहे हैं ।इस तरह देखा जाय । तो प्रथ्वी के वही हिस्से प्यासे हैं जहाँ हम रहते हैं । और इन्ही स्थानों पर प्रथ्वी के अंदर पानी की कमी है । इस तरह पूरे विश्व में ऐसे स्थान प्रथ्वी के कहर का शिकार होगें । और भाग्यवश आज भी जिन जगहों पर पुराने समय
जैसी स्थिति है । वे " तथाकथित पिछङे और आपकी नजर में घटिया इलाके " प्रथ्वी की दया , सहानुभूति , और विशेष प्रेम के पात्र होंगे और निसंदेह उसके क्रोध से बचे रहेंगे ।
प्रलय में एक भूमिका हमारी आधुनिक फ़्लश लैट्रीन की भी होगी । वजह प्रथ्वी के बैलेंस में महत्वपूर्ण रोल अदा करने में हमारे द्वारा त्याज्य मल । पशुओं आदि के द्वारा त्याज्य मल का भी बहुत बङा हाथ होता है । पहले ये सभी मल खेतों और कच्ची जमीन में सप्लाई होता था । ये मल और इसमें हो जाने वाले सुङी , गिडार ,गुबरेला , ढोर आदि केंचुआ नुमा कीङे दोनों ही जमीन की मिट्टी को काफ़ी गहरायी तक भुरभुरा बना देते थे । इससे जो बरसात होती थी । उसका काफ़ी पानी जमीन के अन्दर समा जाता था ।(आज वो पानी जमीन कठोर होने से ऊपर ही ऊपर रहकर नालियों आदि के द्वारा बेकार बह जाता है । ) आज हमने खाद के रूप में अपना मल छोङो । पशुओं का मल भी जमीन खेतों आदि को देना बन्द कर दिया । फ़लस्वरूप अधिकांश स्थानों की जमीन की ऊपरी परत कठोर हो चुकी है । और पानी नहीं सोख पाती है । जिस प्रकार सामान्य भाषा में बिजली में ठंडे और गर्म दो तार कहे जाते है । ये दोनों तार सही होने पर बिजली सही काम करती है । इसी प्रकार अनेकानेक विभिन्न स्रोतों से सोखा गया पानी प्रथ्वी को ठंडा और शांत रखने में अपनी भूमिका निभाता है । अब प्रथ्वी के अंदर ज्वालामुखी आदि ज्वलनशील क्रियाएं तो बखूबी हो रही हैं । पर उन्हें बैलेंस करने बाला जल नहीं है । लिहाजा प्रथ्वी की " परत " दिनोंदिन कमजोर होती जायेगी । और अंत में जगह जगह से प्रथ्वी से आग उसी तरह अग्नि फ़ब्बारे के रूप में निकलेगी । मानों प्रथ्वी दीबाली पर " अनार " नाम से मशहूर पठाखा चला रही हो ।
अंत में मैं एक बात अवश्य कहना चाहूँगा । कि हम विनाश की दहलीज पर आकर खङे हो गये हैं । और ये 65 % का विनाश करने वाली प्रलय किसी भी हालत में नहीं टलेगी । चाहे बैग्यानिक इसके लिये कोई उपाय करे या फ़िर सरकार । प्रलय तो अब होकर रहेगी । प्रलय के बारे में और विस्त्रत जानने के लिये मेरे ब्लाग्स में प्रलय 2012..को भी देखें । प्रलय की सिर्फ़ ये ही वजहें नहीं हैं । बल्कि और भी वजहें होंगी । जिसके बारे में आगे फ़िर बात होगी ।
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