गुरुवार, जून 03, 2010

ये जो अपनी पूजा है..ना..जानते हैं..?

पूजा ,आरती , उपासना , आराधना , ज्योति , मुक्ति , कामना , स्तुति ये किन्ही सुन्दर लङकियों के नाम नहीं हैं बल्कि ये वो बात है । जिसका हमारे जीवन से , जव तक हमें ये अनमोल देही प्राप्त है , बङा ही गहरा सम्बन्ध है । आइये देखें कि हम इनके बारे में क्या और कितना जानते हैं । सबसे पहले मैं पूजा की बात करता हूँ । पूजा हिन्दुस्तानी जीवन में स्त्री , पुरुष और बच्चों तक के बीच में अत्यन्त प्रचलित शब्द
है । हम जब छोटे होते हैं और गुङिया या गुड्डू में से कोई क्यों न हो हमारे माता पिता हमें सिखाने लगते हैं कि बेटा भगवान जी की पूजा कर लो । वास्तव में मैं नहीं जानता कि " पूजा " शब्द कब और कैसे हिन्दी भाषा में आया और संस्कारों से जुङा होने के कारण इतना लोकप्रिय हुआ कि इसके बराबर
रेटिंग वाला दूसरा शब्द मेरी निगाह में नहीं है । अब हैरत की बात ये है कि वास्तव में पूजा हिन्दी का शब्द नहीं है । मूल रूप से ये तमिल भाषा का शब्द है । अतः इसका वास्तविक अर्थ क्या ध्वनित करता है । मैं दावे के साथ नहीं कह सकता । मुझे तमिल भाषा और उसके व्याकरण की समझ नहीं हैं । अतः शब्द धातु के अनुसार मैं इसके घटकों को जानने में नाकाम रहा । आप में से यदि कोई तमिल भाषा का ग्यान रखता हो तो इसका अर्थ क्या होता है । कृपया मुझे अवश्य बतायें । ये शब्द हमारे लिये बङा नुकसानदायक है और हमारी स्तुति आदि की तमाम मेहनत और धन व्यर्थ खर्च करता है । कैसे आईये बताते हैं । मैंने आपसे कहा..राम आगरा में पढ रहा है । अब आप कल्पना करें कि आप राम (भगवान न समझ लेना ) को जानते हैं । आगरा जानते हैं । और पढाई का महत्व जानते हैं । यानी मेरे कहते ही आप के सामने पूरा द्रष्य बन गया और आपने बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के बात का सार निकाल लिया । और जब सार निकल आया तो आप अपेक्षित लाभ ले सकते हैं । अब दूसरी तरह से देखें..अबकी मैंने आपसे कहा..अगीरा पढी रमिया । अब बताइये । राम आगरा पढ रहा है..की तरह आप इस बात का एकदम स्पष्ट अर्थ निकाल सकते हैं । नहीं निकाल सकते । क्योंकि मैंने मिलते जुलते शब्दों का प्रयोग किया है । इसलिये यहाँ आप को पूर्व प्रभाव से लग रहा होगा कि अर्थ निकल आयेगा । मेरा आशय ये है कि किसी ने कुछ ऐसे शब्द बोले जो अन्य भाषा के थे और आप की समझ में कतई नहीं आये तो राम आगरा पढ रहा है । उदाहरण की तरह आप एकदम उसका अर्थ नहीं समझ पायेंगे और अर्थ नहीं समझ पायेंगे तो लाभ ही नहीं होगा । इसी तरह आप पूजा शब्द पर विचार करें । पूजा क्या हैं और इसका मतलब क्या है ? यह बात आपको आगे के शब्द शोधन से भली प्रकार समझ में आ जायेगी ।
मेरा दूसरा शब्द " आरती " है । आरती क्योंकि हिन्दी शब्द है ( वास्तव में हिन्दी भाषा ..संस्कृत से बनी है और संस्कृत हिन्दी की ही नहीं सभी भाषाओं की जननी है ) और संस्कृत के आर्त ( दुखी , पीङित ) से बना है । इसलिये इसका अर्थ एकदम शीशे की तरह साफ़ है । आरती में जो पद रचना होती हे उसमें किसी देवता या भगवान से अपना दुखङा रोया जाता है । ओम जय जगदीश हरे । भक्त जनों के संकट पल में दूर करे । आप किसी भी आरती को ले लें । ये एक दुखी और संकटग्रस्त आदमी की भगवान के लिये , मदद प्राप्ति हेतु एप्लीकेशन ही होगी । इस तरह आर्त से आरत और आरत से आरती बन गयी । अतः आरती अपने अर्थ को स्पष्ट करती हुयी अपनी क्षमता के अनुसार फ़लदायक है ।अगर मैं इसको धातु स्तर पर व्याख्या करूँगा तो ये बेहद जटिल और क्लिष्ट हो जायेगा । इसलिये आप इतने को ही विचार स्तर पर परखेंगे तो भी बहुत लाभ होगा ।
मेरा तीसरा शब्द " आराधना " है । आराधना ही वास्तव में वो शब्द है जो किसी तरह से अन्धेंरे में चला गया और इस बेहतरीन शब्द का स्थान तमिल शब्द पूजा ने ले लिया । मैंने पहले ही कहा कि पूजा शब्द से क्या ध्वनि निकलती हैं । मैं नहीं जानता..पर पूजा शब्द से जो भाव प्रकट होता है । वह निश्चय ही आराधना का अनुसरण करता है । हैरत की बात ये है कि आराधना जैसे मूल शब्द और सटीक भाव को बताने वाले शब्द का " पूजा " शब्द पर्यायवाची या विकल्प के रूप में नहीं आया । बल्कि ये एक तरह से आराधना के अस्तित्व को ही निगल गया । आराधना का मोटे और सतही तौर पर अर्थ है । लक्ष्य की तरफ़ बढ्ना या चढाई करना । तो सीधी सी बात है कि भक्ति की शुरूआत ही है । भगवान के बारे में जानते हुये क्रमशः लक्ष्य की तरफ़ बङना । आराधना यानी आ.. राधन..यानी चढना..मतलव..थ्योरी तो पढ ली । अब प्रक्टीकल किया जाय । तो देखा आपने पूजा शब्द से हमें कितना विकट नुकसान हुआ है । ये साजिश जिन अलौकिक शक्तियों की है । उनके बारे में बता दूँ तो आपके छक्के छूट जायेंगे और आप लुटा हुआ महसूस करेंगे । दरअसल कुछ बङी और मध्यम शक्तियाँ नहीं चाहती कि मनुष्य सत्य को जाने ।
मेरा चौथा शब्द " उपासना " है । उपासना एक बङी और उच्च स्थिति वाला शब्द है । और साधारण शब्द ग्यान वाला भी आसानी से इस उच्च प्रभाव रखने वाले शब्द का अर्थ समझ सकता है । उपासना यानी उप ( ऊपर ) आसन ( बैठना ) यानी ऐसा साधक जो आराधना से ऊपर उठ चुका है । और जीव भाव से ऊपर किसी स्थिति को प्राप्त कर चुका है । और उपासन होकर बैठता है । इसका अर्थ बेहद सरल है और इसमें कोई कठिनाई नहीं है ।
ज्योति शब्द का सामान्य अर्थ है । दीपक की लौ जैसा आकार । या स्थिति के अनुसार प्रकाश । ज्योति शब्द या ज्योति का भक्ति साधनों में काफ़ी इस्तेमाल होता है । और अपनी स्थिति के अनुसार ये रियक्ट करता है । पर मूल ज्योति वह है । जिस पर विभिन्न योनियों के सभी जीव शरीर धारण करते हैं । ज्योति पर ही जीव वासना पतंगे की तरह जल रही है और हम समझते हैं कि बङी मौज बनायी गयी है हमारे लिये । तरह तरह के सुन्दर द्रष्य । खाने पीने की ढेरों प्रकार की सामग्री । कामवासना आदि के लिये सुन्दर सजीले स्त्री पुरुष ...सुन्दर बच्चे..परिवार.आदि.अंग्रेजी के एक शब्द में कहें तो everything..मुझे आशा है । आप इसको समझ गये होंगे । मुक्ति..कामना..स्तुति..आदि भी अधिक कठिन शब्द नहीं हैं । स्वाहा या स्वाह शब्द का भी बङा गूढ अर्थ है जिस पर फ़िर कभी चर्चा करूँगा लेकिन फ़िलहाल आप ये सोचें कि जिस तरह आप इन शब्दों का अर्थ किसी हद तक तो समझ ही गये होंगे ..पर क्या अपनी पूजा को इस तरह जानते हैं ?

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।