सोमवार, सितंबर 06, 2010

महाराज जी के प्रवचन का अंश..



जब प्रलय़ होती है । तब प्रथ्वी जल में । जल वायु में । वायु अग्नि में । अग्नि आकाश में । आकाश महतत्व में लय हो जाता है । इसके बाद गूंज रह जाती है । इस तरह प्रलय हो जाती है । इसी गूंज को शब्द कहते हैं । क्योंकि यह ध्वनि जैसा है । इसलिये इसे गूंज कहते हैं । आदि सृष्टि में । जब सबसे पहले परमात्मा द्वारा
प्रथम बार सृष्टि का निर्माण हुआ । इसी गूंज में । हुं । उत्पन्न हुआ । हुं । यानी अहम भाव । या अहम भाव
की स्फ़ुरणा । तब मूल माया उत्पन्न हुयी । इसके बाद दो प्रकृतियां उत्पन्न हुयीं । परा और अपरा । तब इच्छा उत्पन्न हुयी । इच्छा से चाह उत्पन्न हुयी । चाह से वासना पैदा हुयी । और तब उसने सोचा कि कुछ करना चाहिये । तब पांच महाभूत यानी पांच महाशक्तियां उत्पन्न हुयी । फ़िर ये पांच महाभूत आपस में मिश्रित हो गये । और पांच तत्वों की रचना हुयी । प्रथ्वी । जल । वायु । अग्नि । आकाश । उस समय ये सार तत्व या चेतन या परमात्मा पूर्ण था । उसने संकल्प किया कि मैं एक से अनेक हो जाऊं । तब इसके पहले संकल्प से अन्डज की रचना हुयी । दूसरे संकल्प से जलचर यानी कच्छ मच्छ आदि की रचना हुयी । उस समय ये पहली बार घबराया । तब फ़िर से संकल्प किया । और तब वनचर शेर तेंदुआ आदि की रचना हुयी । फ़िर इसके चौथे संकल्प से मनुष्य़ की रचना हुयी । जो आदि मानव हुआ । वायु में प्रथ्वी का भार होता है । अग्नि का तेज होता है । जल की शीतलता होती है । आकाश की मधुरता होती है । उदाहरण जल में से धुंआ निकलता है । वह अग्नि तत्व का होता है । आग पर कपडा रखने से वह भीग ( पसीज ) जाता है । प्रथ्वी में ज्वालामुखी फ़ूटते हैं । ये अग्नि तत्व के उदाहरण हैं । आकाश तत्व में पांचों तत्व सूक्ष्म रूप से मिले हुये हैं । इच्छा खत्म हुयी तो चाह खत्म हो गयी । चाह खत्म हो गयी तो वासना खत्म हो गयी । और ये जैसा का तैसा हो गया । यही वास्तविक मुक्ति है । श्री महाराज जी के प्रवचन से ..।
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लेखकीय - इधर व्यस्तता अधिक है । ब्लाग्स का कार्य न के बराबर हो रहा है । सतसंग में सुने गये दुर्लभ
रहस्य को आपके लिये संक्षेप में प्रकाशित कर रहा हूं ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।