शनिवार, जनवरी 01, 2011

ईश्वर भी वहीं से आए ?


अनामी पुरूष सबके कर्ता धर्ता हैं । इन्होंने अपनी इच्छा से । अपनी मौज से अगम लोक की रचना की । और अगम पुरूष को स्थापित किया । फिर अलख लोक की रचना की । और अलख पुरूष को स्थापित किया । ये ही वो मालिक हैं । जिन्होंने सतलोक की रचना की । और सतपुरूष को स्थापित किया । अनामी पुरूष ने जो तीनों लोक अपने से अलग स्थापित किए । ये तीनों लोक । तीनों देश एकरस हैं । नीचे की रचना का विस्तार सतपुरूष ने किया । एक आवाज ?? इतनी जोर की सतपुरूष में से निकली । जो अनन्तों मण्डल । अनन्तों लोक । जो गिनती में नहीं आ सकते । उसकी रचना कर दी । ये सारे के सारे मण्डल । लोक इसी सतपुरूष की आवाज पर टिके हुऐ हैं । जब ये लोक सतपुरूष ने तैयार कर दिए । तो अपने देश से दो धाराएं निकाली । एक काल की । और दूसरी दयाल की धारा । फिर एक आवाज चली । जो उसमें से निकाल कर ले आई । उन्होंने अपने देश से अलग ईश्वर । ब्रह्म । पारब्रह्म और महाकाल को उसी आवाज पर स्थापित कर दिया । उसी आवाज पर ? उसी शब्द पर ? उसी वाणी पर ? उसी नाम पर ? ये सबके सब उसी सतपुरूष का अखण्ड ध्यान करते रहे । तपस्या करते करते इतने युग बीत गए कि कलम स्याही और कागज नहीं है । जो लिखा जा सके । तब जाकर सतपुरूष प्रसन्न हुए । और पूछा कि तुम क्या चाहते हो ? उन्होंने कहा कि हमको एक राज्य दे दीजिए । जीवात्माओं के बगैर राज्य नहीं हो सकता था । तब उन्होंने जीवात्माओं को दे दिया । ये सभी जीवात्माए । जो सभी मण्डलों में हैं । उसी सतपुरूष के देश सतलोक से उतार कर नीचे लाईं गईं । ईश्वर भी वहीं से आए ? ब्रह्म भी वहीं से आए । और पारब्रह्म भी वहीं से आए । सभी जीव वहीं से आए । पूरा मसाला जितना भी कारण का । सूक्ष्म का । लिंग का । स्थूल का । ये सब तथा जिसमें आप रहते हें । यानि पंचभौतिक शरीर । पृथ्वी । जल । वायु । अग्नि । आकाश ये सब मसाले वहीं से आए । सभी जीवात्माओं । रूहों यानि सुरतों का एक ही रास्ता आने का और जाने का है । सभी एक ही रास्ते । शब्द । आवाज । देववाणी से उतार कर लाई गईं । और दूसरा कोई रास्ता है ही नहीं । बहुत युग बीत गए । जीवात्माओं को उतारते उतारते । जब उतारकर ले आए । तो पहला कपड़ा कारण का । दूसरा सूक्ष्म का । तीसरा कपड़ा लिंग का । और चौथा कपड़ा मनुष्य शरीर । पांच तत्वों का । पृथ्वी । जल । अग्नि । वायु और आकाश । इसके ऊपर यानी आँखों के ऊपर स्वर्गलोक है । बैकुण्ठलोक है । यह लिंगतत्व है । स्थूल का नहीं यानी पृथ्वी । जल । अग्नि । वायु और आकाश वहाँ नहीं हैं । दस इन्द्रियाँ । चतुष अन्तःकरण । बुद्धि । चित्त और अहंकार । फिर तीन गुण । सतोगुण । रजोगुण और तमोगुण । इन सत्रह तत्वों का लिंग शरीर है । और वह स्वर्ग बैकुण्ठलोक है । इनके परे नौ तत्वों का शरीर । शब्द । स्पर्श । रूप । रस । गंध फिर मन । बुद्धि । चित्त और अहंकार का सूक्ष्म कपड़ा है । इसके बाद कारण कपड़ा पहनाया गया । जो पांच तत्वों का है । शब्द । स्पर्श । रूप । रस और गंध । इसकी भी हदबंदी है । फिर इसके बाद जीवात्मा । जो दोनों आँखों के बीचोंबीच बैठी है । जब कारण कपड़ा छोड़ दिया । तो शब्द रूप हो जाती है । इतने कपड़ों में बांधकर ये जीवात्मा लाई गई । अब बिना महापुरूषों की दया के वापस अपने घर सतलोक नहीं जा सकती । आने जाने वाला मिलना चाहिए । जो इन कपड़ों को उतार चुका हो । और जिसकी सुरत शब्द रूप हो गई हो । वही इन जीवों को ले जा सकता है । और कोई नहीं ।
** श्री Udit bhargava जी द्वारा मेरे लेख after 10 year साधना इसको देख सकते हैं । पर । comment के रूप में दी गयी ये जानकारी । जो किसी संत मत sant mat की पुस्तक से ली गयी है । उपयोगी होने के कारण प्रकाशित कर रहा हूं । इसमें जो विवरण हैं । वह काफ़ी हद तक ठीक कहा जा सकता है । पर इसमें सत्यता प्रतीकात्मक रूप में है । जो मेरे विचार से दुर्लभ संत मत sant mat ग्यान को न जानने वाले को थोडा सा उलझाती और भृमित सी करती है । तथापि ये जानकारी अन्य धार्मिक लेखों की तुलना में बेहद उपयोगी है । बस इसको पढते समय यही ध्यान रखें कि ये प्रतीकात्मक अधिक है । आपका बहुत बहुत आभार । श्री Udit bhargava जी । राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।