शनिवार, नवंबर 26, 2011

अष्टावक्र गीता वाणी ध्वनि स्वरूप - 41


रागद्वेषौ मनोधर्मौ न मनस्ते कदाचन । निर्विकल्पोऽसि बोधात्मा निर्विकारः सुखं चर । 15-5 
राग ( प्रियता ) और द्वेष ( अप्रियता ) मन के धर्म हैं । और तुम किसी भी प्रकार से मन नहीं हो ।  तुम कामना रहित हो । ज्ञान स्वरुप हो । विकार रहित हो । अतः सुखपूर्वक रहो । 5
सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि । विज्ञाय निरहंकारो निर्ममस्त्वं सुखी भव । 15-6
समस्त प्राणियों को । स्वयं में । और स्वयं को । सभी प्राणियों में । स्थित जानकर । अहंकार और आसक्ति से । रहित होकर । तुम सुखी हो जाओ । 6
विश्वं स्फुरति यत्रेदं तरंगा इव सागरे । तत्त्वमेव न सन्देहश्चिन्मूर्ते विज्वरो भव । 15-7 
इस विश्व की उत्पत्ति । तुमसे । उसी प्रकार होती है । जैसे कि समुद्र से । लहरों की । इसमें संदेह नहीं है । तुम चैतन्य स्वरुप हो । अतः चिंता रहित हो जाओ । 7
श्रद्धस्व तात श्रद्धस्व नात्र मोऽहं कुरुष्व भोः । ज्ञानस्वरूपो भगवानात्मा त्वं प्रकृतेः परः । 15-8 
हे प्रिय ! इस अनुभव पर । निष्ठा रखो । इस पर । श्रद्धा रखो । इस अनुभव की सत्यता के । सम्बन्ध में मोहित मत हो । तुम ज्ञान स्वरुप हो । तुम प्रकृति से परे । और आत्म स्वरुप भगवान हो । 8
अष्टावक्र त्रेता युग के महान आत्मज्ञानी सन्त हुये । जिन्होंने जनक को कुछ ही क्षणों में आत्म साक्षात्कार कराया । आप भी  इस दुर्लभ गूढ रहस्य को इस वाणी द्वारा आसानी से जान सकते हैं । इस वाणी को सुनने के लिये नीचे बने नीले रंग के प्लेयर के प्ले > निशान पर क्लिक करें । और लगभग 3-4 सेकेंड का इंतजार करें । गीता वाणी सुनने में आपके इंटरनेट कनेक्शन की स्पीड पर उसकी स्पष्टता निर्भर है । और कम्प्यूटर के स्पीकर की ध्वनि क्षमता पर भी । प्रत्येक वाणी 1 घण्टे से भी अधिक की है । इस प्लेयर में आटोमेटिक ही वाल्यूम 50% यानी आधा होता है । जिसे वाल्यूम लाइन पर क्लिक करके बढा सकते हैं । इस वाणी को आप डाउनलोड भी कर सकते हैं । इसके लिये प्लेयर के अन्त में स्पीकर के निशान के आगे एक कङी का निशान या लेटे हुये  8 जैसे निशान पर क्लिक करेंगे । तो इसकी लिंक बेवसाइट खुल जायेगी । वहाँ डाउनलोड आप्शन पर क्लिक करके आप इस वाणी को अपने कम्प्यूटर में डाउनलोड कर सकते हैं । ये वाणी न सिर्फ़ आपके दिमाग में अब तक घूमते रहे कई प्रश्नों का उत्तर देगी । बल्कि एक  मुक्तता का अहसास भी करायेगी । और तब हर कोई अपने को बेहद हल्का और आनन्द युक्त महसूस करेगा ।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।