
विचित्र कथ्य देखे . कबीर ने कहा . काल काल सब कोय कहे काल न जानत कोय जेती मन की कल्पना काल कहावे सोय .
रजनीश ने इसी बात को यूँ कहा . नया निर्माण मत करो पुराना गिरा दो .इन तीन लाइनों का अगर सही अर्थ कोई समझ लें तो फ़िर जीवन में किसी ग्यान की आवश्यकता शेष न रहेगी
अब कबीर वाली बात लें जीव कल्पना से जुङा होने के कारण जीव उपाधि को प्राप्त है अर्थात ये कल्पना से अपने आप को मान बैठा है और निरंतर कल्पना में है इसीलिये जीवन मरण से जुङा है ये कल्पना क्या है तुलसी...ईश्वर अंश...अमल सहज सुखराशी .आगे की लाइन महत्वपूर्ण है जङ चेतन ग्रन्थ परि गयी जधपि मृषा छूटत कठिनई..ये जङ और चेतन की जो गांठ है ये मृषा यानी मिथ्या यानी झूठी यानी कल्पित है
अब सार जानिये कबीर तुलसी रजनीश यहाँ एक ही बात कह रहें
हैं . कबीर..कल्पना से बाहर आने की तरकीव खोज ले काल से परे
कालातीत जान सकेगा .रजनीश .संचित संस्कारों को ग्यान विशेष से नष्ट कर दे और नये पैदा मत कर ..सच्चाई जान लेगा . तुलसी .जङ चेतन की झूठी गांठ को खत्म कर दे फ़िर वही शेष रहेगा जो तू वास्तव में है..यानी चेतन अमल सहज सुखराशी . अब एक अजीव बात.. आप एक कल्पना करो कि हवाई जहाज का इंजन बस में लगा दो और शेष सिस्टम बस का ही हो तो बस उङने लगेगी..नहीं अगर बस को हवाई जहाज की तरह उङाना है तो प्लेन की अन्य तकनीक पुर्जों का भी इस्तेमाल करना होगा..तो आप मन माया (माना हुआ कल्पित ) में विचरण कर रहें
इसलिये सत्य नहीं देख पा रहे .
दूसरा उदाहरण ...जादू के खेल को हम कितनी दिलचस्पी से देखते हैं और वो जादू कैसे हुआ इसकी हमें बेहद उत्कन्ठा रहती है..लेकिन जादूगर के स्टाफ़ या उस जादू का मर्म जानने वाले को रहती है . नहीं क्योंकि उन्हें पता ही है कि इसकी वास्तविकता क्या है इसलिये तुम जब तक मन से कनेक्ट हो सच्चाई लाखों कोस दूर ही रहेगी लेकिन अमन होते ही वास्तविकता इस तरह सामने होगी जैसे पीछे मुङकर देखा हो और ये दुर्लभ नहीं है..हरेक जीव चोबीस घन्टे में इससे मिलती जुलती अवस्था से लगभग दो या तीन बार गुजरत्ता है पर तुम अपनी ही बात जान नहीं पाते .
2 टिप्पणियां:
sarahneey blog. badhai!!
kabir aur rajnish ki chemistry samjhane ke liye badhai. thodi bhasa nikharne ki avashyakta hai. asha hai aap anyatha nahi lenge.
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