शनिवार, अप्रैल 10, 2010

दस मुद्राओं के बारे में जाने ??.

परमात्मा ने जैसे ब्रह्माण्ड की रचना की . उसी नमूना में मनुष्य शरीर की रचना की .
इच्छानि स्रष्टि - संकल्प द्वारा स्रष्टि करना ,जिसे योगी आज भी कर लेते हैं .
सासिद्धक स्रष्टि - इच्छानुसार शरीर बना लेना , मारीच हिरन बना .
मुद्राएं - परमात्म साक्षात्कार के लिये की गयी क्रिया अवस्था को मुद्रा कहतें हैं .
यह दस प्रकार की है .
1 - चाचरी - आँख बन्द कर अन्तर में नाभि से नासिका के अग्रभाग तक द्रण होकर देखना .
2 - खीचरी - जीभ को उलटकर ब्रह्मरन्ध्र तक पहुँचाकर स्थिर कर लें .
3 - भूचरी -परमात्मा का नाम ( हँसो ) अजपा जप को प्राण के मध्य ध्यान में रखकर मनन करना .
4 - अगोचरी - कानों को बन्द कर अन्दर की ध्वनि सुनना .
5 - उनमनी - द्रष्टि को भोंहों के मध्य टिकाना .
अन्य पाँच विशेष मुद्राएं है . उनका साक्षात्कार प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है .
1 - साम्भवी - जीवों में संकल्प से प्रवेश कर उनके अन्तकरण का अनुभव करना
2 - सनमुखी - संकल्प से ही कार्य होने लगे .
3 - सर्वसाक्षी - स्वयं को , तथा परमात्मा को सबमें देखना .
4 - पूर्णबोधिनी - जिसका विचार करता है उसकी पूर्ति तथा बोध पल भर में ही हो जाता है . एक ही जगह स्थित सम्पूर्ण जगत की बात जानना .
5 -उनमीलनी - अनहोने कार्य करने की सिद्धि .
.. भय उत्पन्न होने पर निसन्देह विनाश के गाल में पहुँच जाता है क्योंकि यह जीव के लक्षणों में संगति करता है . भय , निद्रा , मैथुन , आहार ,जब तक ये ह्रदय से बाहर नहीं होते तब तक वह परमात्मा की पूर्ण निष्ठा का दर्शन नहीं करता . हर जीव को मृत्यु का भय व्यापता है . इसी भय के कारण जीव मृत्यु को प्राप्त होता है . वरना तो जीव अविनाशी है .

कोई टिप्पणी नहीं:

Welcome

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।