
में समाया हुआ है .वह अविनाशी अक्षर ही स्वांस की आने
जाने की क्रिया को चलाता है तथा प्राण का कारण रूप है .
परमात्मा का अनुभव ध्यान , सुमरन, चिन्तन सुरति द्वारा
किया जाता है जब सुरति अक्षर में पूर्ण रूप से पहुँच जाती
है तब वह अक्षर से प्राण में और प्राण से सूक्ष्म भूमा में
पहुँच जाता है .
भूमा तत्व का उदाहरण - नींद में स्वप्न में आनन्द , इन्द्रियों
का आत्म बोध . साधक इन्द्रियों को स्थिर कर प्राण में अक्षर को जानता है अक्षर की संगत से वह बार बार अक्षर में ध्यान करता है ..तब अक्षर के घर्षण से भूमानन्द का अनुभव होता है वह भूमा आत्मा ही प्रथम पाद है .
आकाश अणुओं से भरा पङा है सुई की नोक के बराबर खाली स्थान नहीं है . उदाहरण - सूर्य के प्रकाश में दिखने वाले अणु परमाणु आदि . जिस प्रकार वाष्प से बिन्दु बनता है . बिन्दु से ध्वनात्मक शब्द उत्पन्न होता है तथा ध्वनात्मक से " हँसो " वर्ण का रूप धारण कर लेता है . जब प्राण से प्राण टकराता है तब एक झीना शब्द प्रकट कर लेता है .
आकाश अक्षर में स्थित है . आकाश का सूक्ष्म तत्व शब्द शून्यता चिन्ता मोह संदेह ये सारे गुण आकाश के ही हैं . जीव अपने को कर्ता मानता हुआ कार्य करता है इसलिये उसे
उसका भोग मिलता है . आत्म सुख में बाधा डालने वाली ये
विषय वासना ही है .??
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