शनिवार, अप्रैल 10, 2010

जीव की संरचना इस प्रकार की है .

जीव की संरचना इस प्रकार की है .
आकृति - तीन शरीर मुख्य है . स्थूल शरीर - बाह्य शरीर , ये कृतिम है और खोल या आवरण मात्र है .
सूक्ष्म शरीर - ये आता जाता है . और भोग और इच्छाओं या अन्य बहुत से प्रयोजनों के लिये आवरण धारण करता है .मत्यु के बाद यही जाता है .
कारण शरीर - जिस कारण हेतु ये शरीर धारण हुआ है वो कारण बीज में निहित है .
* इसके अतिरिक्त तीन शरीर और है पर वे योगियों के होते हैं . जीव इन तीन श्रेणियों को पारकर ही उन्हें जान सकता है और वह योग अवस्था कहलाती है .
स्थूल शरीर पाँच तत्वों का बना है . प्रथ्वी , जल , वायु , अग्नि , आकाश
शरीर में प्रथ्वी का अंश - त्वचा , हड्डी , नाङी , बाल , माँस हैं
जल का अंश - रक्त , वीर्य , पसीना , मूत्र , लार हैं
अग्नि का अंश - भूख , प्यास , आलस , नींद ,तेज हैं
वायु का अंश - चलना , बोलना , दौङना , फ़ैलाना , सिकोङना हैं
आकाश का अंश - काम , क्रोध , लोभ , मोह , भय , हैं
इनकी सहायक प्रकृतियां भी हैं तथा इस सम्बन्ध में ग्यानियों में मतभेद भी हैं पर एक नजर देखने पर इन मुख्य प्रकृतियों में कोई दोष नजर नहीं आता है .
नाभि में जो चक्र है उसमें शरीर की सारी नाङियाँ गुथी हुयीं है . उसमें संयम करने से शरीर के सारे व्यूह का ग्यान होता है . वक्षस्थल में कछुए की आकार की नाङी है . यहाँ साधक का चित्त और शरीर दोनों ही स्थिर हो जाते हैं . कण्ठ में संयम करने से अपने स्वरूप को जान लेता है तथा भूख प्यास से रहित हो जाता है .
जिह्वा के ऊपर जो कपाल में छिद्र गया है उसे ब्रह्माण्ड कहते हैं . उसमें संयम करने से साधक संसार सागर से उठकर स्वर्ग लोक तक विचरने वाले सिद्धों के दर्शन होते हैं क्योंकि ब्रह्माण्ड में वयान प्राण ( वायु ) विचरण करता है उससे सूक्ष्मता और हल्कापन आ जाता है . भगवान शंकर ने बताया कि जितनी योनियां एवं सूक्ष्म योनियां याने चौरासी लाख उतने ही आसन है . उनमें चौरासी श्रेष्ठ है . चौरासी में दस श्रेष्ठ हैं . दस में चार आसन मुख्य हैं .

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।