शनिवार, अप्रैल 10, 2010

तप करने का अर्थ ये है कि...

शरीर और इन्द्रियों को तपाने से शक्तियों का संचय होने लगता है .तपाने या तप करने का अर्थ ये है कि मन को प्राण में और प्राण को परमात्मा में लगायें जब प्राण में प्राण का हवन किया जाता है तो प्राण में प्राण के संगत से प्राण सूक्ष्म होने लगता है तब इन्द्रियां शान्त होने लगती हैं .मन अपने दौङने की गति पर रुक कर चलता है तब बुद्धि में शुद्धता आने लगती है यानी प्राण व इन्द्रियों की गति समान होने लगती है . तब शुद्ध ध्यान परमात्मा की ओर चलता है और उस ध्यान से सारतत्व का बोध होने लगता है . लम्बा स्वर जो देर तक प्रतीत होता है . वह ध्वनि को प्रकट कर लेता है . सपेरा बीन में लगातार फ़ूँक मारकर ऐसी ध्वनि पैदा करता है तो सर्प मस्त होकर शरीर का ध्यान खो देता है इसी प्रकार शरीर रूपी बाँसुरी में जिसमें सात स्वर ऊपर की ओर और दो नीचे की ओर हो रहे हैं . उन दो नीचे वालों में एक सामने खुला , दूसरा नीचे मुख किये हुये है . ऐसी शरीर रूपी बाँसुरी में फ़ूँक मारता है तब इस शरीर रूपी बाँसुरी में वाक (वाणी ) पैदा हो जाती है जब स्वर निरन्तर ध्वनि करता है तब उस स्वर में ध्यान की संगति हो जाती है .

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।