शनिवार, अप्रैल 10, 2010

शरीरमें चक्रों की स्थिति क्या है ?

पाँच तत्वों से बने इस शरीर के अन्दर चक्रों का प्रतिपादन इस प्रकार है . शरीर में गुदाद्वार व लिंग के बीच " स्वाधिष्ठान चक्र " है . इसमें गणेश का निवास है . लिंगदेश में " मूलाधारचक्र " है . जिसमें ब्रह्मा का निवास है जो स्रष्टि की उत्पत्ति करता है . नाभि में " मणिपूरक चक्र " है . जिसमें शक्ति का निवास रहता है . यहाँ पर कुण्डलिनी भी चौबीस नाङियों के सहित निवास करती है .नाभि के ऊपर उदर में " अनाहत चक्र " है जिसमें पार्वती सहित शंकर निवास करतें हैं और संहारकर्ता की भूमिका निभाते है. और ह्रदय देश में कण्ठ के नीचे "विशुद्धचक्र " है . जिसमें विष्णु भगवान जो स्रष्टि का पालन करते हैं . वह इस क्षीर सागर में निवास करते हैं . कण्ठ पर जीव निवास करता है . जो शरीर को धारण किये हुये शरीर में
व्यापक है . मुख में कण्ठ के ऊपर तालु में एक छिद्र जो ऊपर की ओर गया है जिसे " ब्रह्मरन्ध्र " भी कहा जाता है . उसका द्वार ही "व्योमचक्र" है . जहाँ सरस्वती निवास करती है . दोनों भोहों के बीच में "आग्याचक्र" है . जहाँ गुरुदेव का निवास है .इसके ऊपर चोटी पर" सहस्रारचक्र " है जिसे सहस्रदल भी कहते हैं जहाँ हजार पँखुङियां है जिसके बीच में " हंग " नामक शक्ति रहती है . उसके ही प्रभाव से सारे शरीर में चेतना पहुँचती रहती है . " हंग " का बिम्ब पहले आग्याचक्र में पङता है जिसमें दो पँखुङी का कमल है . तिरछा बिम्ब पङने के कारण दो शब्द प्रकट हुये " हंग क्षंग " फ़िर उसका प्रतिबिम्ब नाभि पर पङा बीच में सभी चक्रों पर शब्द का ऐसा प्रताप हुआ कि सारे चक्रों पर शब्द प्रकट हो गया . चक्रों पर संयम करने से होने वाले लाभ क्या है ?
नाभिचक्र - नाङियों के ग्यान में पारंगत , शरीर की धातुओं का ग्यान , कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत . ब्रह्मपुर , वक्षस्थल - चित्त तथा शरीर स्थिर . कण्ठ - भूख प्यास पर विजय , जीव के स्वरूप को जानना .
तालू के छेद , व्योमचक्र - सूक्ष्म स्वरूप को जानना , इसमें प्रवेश होकर दसवें द्वार से होकर स्वर्ग तथा प्रथ्वी के बीच स्थित सभी सिद्ध लोगों को देखता हुआ लोक लोकांतरों में प्रवेश हो ब्रह्म में मिल जाता है .
आग्याचक्र , दोनों भोहों के बीच - त्राटक सिद्ध कर लेता है . सहस्रदलचक्र - आठों सिद्धियां , नौ निधियां , काफ़ी समय तक प्राण खींचकर समाधिस्थ रह सकता है .

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।