
स्वांस प्रश्वांस के साथ 21600 जप सर्वदा करता है . सत्संग का आशय परमात्मा के संग से है चाहे वह परमात्मा की वाक द्वारा विवेचना करने में या समाधि द्वारा साक्षात्कार करने को ही सत्संग कहा जाता है . वह नाम या रूप के प्रसंग से परिपूर्ण हो यानी परमात्मा का निर्णय किसी भी भाव से किया जाय वह सत्संग ही है . ग्यानी पुरुष को चाहिये कि वह साधक की बुद्धि के आधार पर ही उसके मनन चिन्तन निदिध्यासन की उपेक्षा करे क्योंकि जीव में अलग अलग निष्ठा होती है .
भावनात्मक साधना को करता है और प्रतीक उपासना को ग्रहण करता है . साधना करने वाले की बुद्धि परीक्षा करके उसे वैसे ही परमात्मा का उपदेश करना चाहिये . बुद्धि मल विक्षेप आवरण से ढकी होती है जब यह आवरण हट जाते हैं तो
परमात्मा में स्वतः निष्ठा हो जाती है .
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