शनिवार, अगस्त 21, 2010

हनुमान जी का जन्म


बहुत कम लोग ये बात जानते होंगे कि हनुमान जी का जन्म कैसे हुआ . श्री रामचन्द्रजी के पदस्पर्श से पत्थर से औरत बनी अहिल्या हनुमानजी की नानी थीं .और गौतम रिषी उनके नाना थे . हनुमान की माता अंजनी गौतम की पुत्री थीं . ये बात बहुत से लोगो को पता है कि इन्द्र अहिल्या पर आसक्त हो गया था.उसने एक दिन एक चाल चली .उसे पता था कि गौतम सुबह चार बजे गंगा स्नान के लिये जाते हैं .उसने अपने एक साथी के साथ मिल कर एक दिन रात के दो बजे सूर्य निकलने जैसा प्रकाश फ़ैला दिया . और मुर्गे की नकली बांग निकाली .होनी ही थी, कि गौतम ने उसे सच समझा और गंगास्नान के लिये चले गये .उधर इन्द्र ने गौतम का वेश बनाकर अहिल्या के साथ व्यभिचार किया .वास्तव में थोडी ही देर में अहिल्या को पता चल गया कि उसके साथ कामाचार करने वाला कोई कपटी है लेकिन उसने कोई एतराज नहीं किया . अंजनी यह द्रष्य देख रही थी. बाद में अहिल्या को पता चला कि अंजनी ने उसके साथ छ्ल होते देख लिया है.उसने अंजनी से कहा कि वह ये बात अपने पिता को न बताये,लेकिन अंजनी ने उसकी बात मानने से साफ़ इंकार कर दिया.तब क्रोधित होकर अंजनी ने उसे शाप दे दिया कि में करे हुये का भोगूंगी,पर तू बिना किये का भोगेगी. उधर थोडी ही देर में गौतम जी को पता चला कि उनके साथ छ्ल हुआ है.उन्होने वहीं ध्यान लगाया और सारा हाल जान लिया,अब उनके मन में एक ही बात थी कि देखें अहिल्या इस बात को छुपाती है या बता देती है. ऐसा ही हुआ अहिल्या इस बात को छुपा गयी और गौतम जी ने उसे पत्थर की हो जाने का शाप दे दिया .उस समय अहिल्या क्रोध में थी क्योंकि गौतम जी ने अंजनी से छल के बारे में पूछा था तो अंजनी ने साफ़ साफ़ सच बता दिया .इसीलिये अहिल्या ने अंजनी को शाप दिया कि वो बिना करे का भुगतेगी.इस पर अंजनी ने द्रणता से कहा कि वह अपने जीवन में किसी पुरुष की छाया भी अपने ऊपर नहीं पङ्ने देगी ऐसा कह कर वह उसी समय निर्जन वन में तप करने चली गयी.और अहिल्या रिषी के शाप से पत्थर की हो गयी अहिल्या के शाप देने के बाद अंजनी रिष्य्मूक पर्वत श्रंखला में चली गयी और घनघोर तप करने लगी. उधर सती के अपने पिता के घर यग्य में दाह करने के बाद बहुत समय बीत चुका था और भगवान शंकर में तेज का समावेश हो चुका था देवता विचार कर रहे थे कि शंकर जी को बहुत समय से सती का साथ नहीं है ऐसे में यदि उनका तेज (वीर्य) स्खलित हो गया तो हाहाकार मच जायेगा. इसके लिये वे एक ऐसी तपस्वनी की तलाश में थे जो शंकर का तेज सह सके. तब देवताओं ने ध्यान से देखा तो उन्हें अंजनी नजर आई .अंजनी संसार से ध्यान हटाकर घनघोर तपस्या में लीन थी और राम के अवतरण का समय आ चुका था. रुद्र के ग्यारहवें अंश हनुमान जी के अवतार का भी समय आ रहा था .तब कुछ देवता भगवान शंकर के साथ महात्माओं का वेश वनाकर अंजनी की कुटिया के सामने पहुँचे और पानी पीने की इच्छा जाहिर की .अंजनी ने प्रण कर रखा था कि किसी भी पुरुष की छाया तक अपने ऊपर न पङने देगी.लेकिन महात्माओं को जल पिलाने में उसे कोई बुराई नजर नही आयी.और महात्माओं को जल न पिलाने से उसकी तपस्या में दोष आ सकता था इसलिये वह महात्माओं को जल पिलाने के उद्देश्य से एक पात्र में जल ले आयी.जब वह जल पिलाने लगी तो महात्माओं ने पूछा कि बेटी तुमने गुरु किया या नहीं. अंजली ने कहा कि वह गुरु के विषय में कुछ नहीं जानती .तब महात्माओं ने कहा कि निगुरा (जिसका कोई गुरु न हो ) का पानी पीने से भी पाप लगता है अतः हम तुम्हारा जल नहीं पी सकते .अंजनी को जब गुरु का इतना महत्व पता चला तो उसने महात्माओं से गुरु के बारे में और अधिक जाना फ़िर उसने इच्छा जाहिर की कि वे महात्मा लोग उसे गुरुदीक्षा कराने में मदद करें. देवताओं ने कहा कि ये महात्मा (शंकर जी ) तुम्हें दीक्षा दे सकते हैं.अंजनी ने विधिवत दीक्षा ली और शंकर ने दीक्षा प्रदान करते समय उसके कान में मन्त्र फ़ूँकते समय अपना तेज उसके अंदर प्रविष्ट कर दिया .इससे अंजनी को गर्भ ठहर गया. उसे लगा कि महात्मा वेशधारी पुरुषों ने उसके साथ छल किया है. उसने अपनी अंजुली में जल लिया और उसी समय शाप देने को उद्धत हो गयी .तब शंकर आदि अपने असली वेश में आ गये और कहा कि वेटी तू अपनी तपस्या नष्ट न कर और ये सब होना था तेरा ये पुत्र युगों तक पूज्यनीय होगा और ये सब पहले से निश्चित था. अंजनी संतुष्ट हो गयी.
उधर केसरी वानर अंजनी पर आसक्त था और बाद में अंजनी का भी रुझान भी केसरी की तरफ़ हो गया और दोनों ने विवाह कर लिया इस तरह हनुमान जी के अवतार का कारण बना और अहिल्या का ये शाप कि तू विना किये का भोगेगी भी सच हो गया. वास्तव में अलौकिक घटनायें रहस्मय होती हैं और मानवीय बुद्धि से इनका आंकलन नहीं किया जा सकता है जो सच हमारे सामने आता है उसके पीछे भी कोई सच होता है .

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।