
कोई स्वभाव से तिरछा है तो उसे कृपा का थोडा ही अनुभव होता है । कोई उल्टा स्वभाव का है तो उसे बात समझ ही नहीं आती है । कोई फूटे घड़े के सामान है वो बात समझता तो है पर बात को अपने रोक नहीं पाटा है ।
जो सीधा घड़े के सामान है वो बात को ग्रहण करता है और उसका लाभ भी उठता है और मुक्ति पाने का अधिकारी भी होता है । वास्तव मैं सीधे घड़े से मतलव है के आत्म ज्ञान का महत्व समझ मैं आते ही सतगुरु के सामने समपर्ण हो जाना । शिष्य के समपर्ण होते ही उसे अलोकिक रहस्य्य समझ मैं आने लगते हैं लेकिन ये जब सतगुरु से तुम्हारा मिलना हो जय तभी संभव है । यहाँ मैं एक बात बता दूँ हरेक कोई सतगुरु नहीं होता । सतगुरु वाही है जो तुम्हारी आत्मा को प्रकाशित कर दें या तुम्हारा तीसरा नेत्र खोल दें य्यादी तुम्हें गुरु की शरण मैं आये हुए तीन महीने से अधिक हो गए और तुम बताये हुए तरीके से साधना भी कर रहे हो और तुम्हें कोई अनुभव नहीं हुआ तो तुम सतगुरु तो क्या किसी गुरु की शरण मैं भी नहीं हो । धर्म्ग्रिन्ठो मई इस बात को स्पष्ट कहा गया है के कलियुग मैं झूतेहें गुरुओं का बेहद बोलबाला होगा और जनता इनकी झूठी बातों मैं उलझ कर रह जाएगी । इसलिए यदि आपका गुरु सच्चा है तो अधिक से अधिक आपको तीन महीने मैं अलोकिक अनुभव होने लगंगे । मैं ऐसे साधको को जनता हूँ जिन्हें ११ दिनों मैं अनेक अनुभव हुए और वो भली प्रकार साधना करने लगे वास्तव मैं सहज योग उसी तरह से है जैसे आप बिजली के तार से कबले अपने घर मैं जोड़तें है और लाइट जलने लगती है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें