सोमवार, मार्च 29, 2010

ये मन सबसे बङा भिखारी है ??.

ये मन सबसे बङा भिखारी है .| श्री महाराज जी के प्रवचन से..|
एक राजा के पास एक बकरा था .राजा उस बकरे को बेहद चाहता था .एक बार उसने एलान किया कि जो भी उसके
बकरे को अफ़रा (खाने से इतना पेट भर देना कि कुछ भी खाने को जी न करे और खाने की तरफ़ देखने की भी इच्छा न हो ) लायेगा उसे बहुत सा सोना इनाम देंगे . बहुत लोग इनाम के लालच में बकरे को जंगल ले जाते और पूरे दिन बढिया बढिया पत्ते घास आदि खिलाते और शाम को ये सोचकर कि अब बकरा बेहद अफ़र गया है ,राजा के पास ले आते . बकरा अफ़र चुका है , इसके परीक्षण के लिये राजा थोङे पत्ते हाथ में लेकर बकरे के मुँह के पास लाता और अपने स्वभाव के अनुसार बकरा पत्तों की तरफ़ मुँह बङा देता और प्रतियोगी हार जाता . एक चतुर आदमी ने कहा कि वह राजा के बकरे को अफ़राकर लायेगा . वह बकरे को अपने साथ जंगल ले गया और हाथ में एक डंडा ले लिया , जैसे ही बकरा किसी चीज को खाने की कोशिश करता वह आदमी उसके मुँह में डंडा मार देता .
बेहद भूखा होने पर भी उसने बकरे को एकतिनका तक न खाने दिया .खाने की तरफ़ मुँह बङाते ही वह फ़ौरन उसके डंडा मारता..इससे डरकर बकरे ने भूखा होने के बाबजूद भी खाने की तरफ़ देखना भी छोङ दिया..शाम को
वह आदमी बकरे को लेकर राजा के पास पहुँचा और बोला कि इसका पेट भर चुका है..परीक्षण के लिये राजा ने पत्ते
बकरे के मुँह के पास किये तो मार की याद आते ही बकरे ने मुँह फ़ेर लिया..राजा ने कहा कि तुमने वास्तव में बकरे को अफ़रा दिया है..
वास्तव में हमारे मन की हालत ठीक ऐसी ही है इसे कितना ही खिलाओ ये त्रप्त नहीं होता है..ये सबसे बङा भिखारी है..अच्छी तरह जानते हुये भी कि बहुत की आवश्यकता नहीं है ये तमाम लोभ लालच में फ़ँसा रहता है और जीव को अंत में नरक में ले जाता है वास्तव में इसके चंगुल में ही फ़ँसकर जीव की ये दशा हो गयी..
जरा सोचो जब रात को हम आराम से लेटे होते हैं तब भी ये कल्पना से हमें तरह तरह के लोभ लालच में ले जाकर सपने दिखाता है कामी क्रोधी लालची इनसे भक्ति न होय . भक्ति करे कोई सूरमा जाति वर्ण कुल खोय .

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।