
यहाँ नाम का अर्थ ढाई अक्षर के महामंत्र से है. वास्तव में जीव (मनुष्य) की अमरलोक से बिछ्ङ्ने के बाद काग व्रति हो गयी और ये अपना अमी आहार छोङकर विष्ठा रूपी वासना में मुंह मारता फ़िरता है .
सतगुरु इसे इसकी वास्तविक हैसियत बताते हैं. और काग से हंस बनाने के लिये महामन्त्र की दीक्षा देते हैं.ये दीक्षा हंसदीक्षा कहलाती है.इसका रहस्य ये है कि जीव सार और असार में फ़र्क जानने लगता है.हंस के बारे में सब जानते हैं कि वो दूध का दूध और पानी अलग कर देता है.यानी दूध पीकर पानी छोङ देता है.
इस नाम का जिन दोहों में जिक्र है.वे निम्न हैं.
कलियुग केवल नाम अधारा. सुमरि सुमरि नर उतरिहं पारा. तुलसी रामायण
महामंत्र जोइ जपत महेशू काशी मुक्ति हेतु उपदेशू
मन्त्र परम लघु जासु वश विधि हरि हर सुर सर्व. मदमत्त गजराज को अंकुश कर ले खर्व.
उल्टा नाम जपा जग जाना. वाल्मीक भये ब्रह्म समाना.
कहां लग करिहों नाम बङाई सके न राम नाम गुण गाईं
सबहिं सुलभ सब दिन सब देशा सेवत सादर शमन कलेशा (गुप्त है)
उमा कहूं में अनुभव अपना सत हरि नाम जगत सब सपना
औरऊ एक गुप्त मत ताहिं कहूं कर जोर शंकर भजन बिना ना पावे गति मोरि
नाम लेत भव सिन्धु सुखाहीं करहु विचार सुजन मन माहीं
पायो जी मेंने नाम रतन धन पायो ..मीरा
नाम रसायन तुम्हरे पासा..हनु..चालीसा
नाम लिया तिन सब लिया चार वेद का भेद बिना नाम नरके पढ पढ चारों वेद..कबीर
और भी बहुत से दोहे है.
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