रविवार, जनवरी 01, 2012

आत्मा




1. आत्मा - जिसके पहचान के लिये इच्छा, द्वेष, सुख, दुख, ज्ञान और प्रयत्न लिंग हैं, यही भोगता है यही निर्लेप भी है। इसी का सारा खेल है। ज्ञान दृष्टि होने पर बंध, मोक्ष मन का धर्म है।

2. शरीर - जो चेष्टा, इंद्रियों और अर्थों का आश्रय है और भोग का स्थान है। बाह्य रूप में यह स्थूल है।

3. इंद्रिय - आंख, नाक, कान, जीभ, त्वचा जिसके उपादान कारण प्रथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश हैं। ये भोग के साधन हैं या ज्ञानेन्द्रियां हैं।

4. अर्थ या विषय - रस, रूप, गंध, स्पर्श, और शब्द हैं। जो पांचो इंद्रियों के भोगने के विषय और पांच भूतों के यथायोग्य गुण भी हैं। मनुष्य में ये पाँचो होते हैं अन्य जीवों में एक ही अधिक होता है।

5. बुद्धि, ज्ञान, उपलब्धि - ये तीनों पर्याय शब्द हैं। विषयों को भोगना या अनुभव करना बुद्धि है।

6. मन - जिसका लिंग एक से अधिक ज्ञानेन्द्रियों से एक समय में ज्ञान न होना है। जो सारी इन्द्रियों
का सहायक है और सुख दुख आदि का अनुभव कराता है। पच्चीस प्रकृतियां, पाँच ज्ञानेन्द्रियां, पाँच कर्मेंन्द्रियां, पाँच तत्वों के शरीर का राजा ये मन है।

7. प्रवृति - मन, वाणी, और शरीर से कार्य का आरम्भ होना प्रवृति है।

8. दोष - प्रवृत करना जिनका लक्षण होता है, ये मोह, राग, द्वेष, तीन दोष हैं।

9. प्रेतभाव - पुनर्जन्म अर्थात सूक्ष्म शरीर का एक शरीर को छोङकर दूसरे को धारण करना प्रेतभाव है। गीता में कृष्ण ने कहा था - हे अर्जुन, सब भूतों में मैं ही स्थित हूँ।

10. फ़ल - प्रवृत और दोष से जो अर्थ उत्पन्न हो, उसे फ़ल कहते हैं ।
फ़ल दो प्रकार का होता है। एक - मुख्य, दूसरा - गौण। मुख्य फ़ल में सुख दुख के अनुभव आते हैं और गौण फ़ल में सुख दुख के साधन शरीर इन्द्रियां विषय आदि का समावेश होता है।

11. दुख - जिसका लक्षण पीङा होता है। सुख भी दुख के अंतर्गत है। क्योंकि सुख विना दुख के रह नहीं सकता। एक के बाद दूसरे का आना तय है। जैसे दिन के बाद रात और जीवन के मृत्यु निश्चित है।

12. अपवर्ग - दुख की निवृति हो जाना, ब्रह्म की प्राप्ति हो जाना, ज्ञान की प्राप्ति या सृष्टि से अलग ज्ञान में प्रविष्ट को अपवर्ग कहते हैं।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।