सोमवार, जनवरी 02, 2012

गुरूभक्ति योग


गुरूभक्ति योग की भावना - जिस प्रकार शीघ्र ईश्वर दर्शन के लिये कलियुग में साधना के रूप में कीर्तन साधना है । ठीक उसी प्रकार इस संशय, नास्तिकता, अभिमान, और अहंकार के युग में योग की एक सनातन पद्धति यहाँ प्रस्तुत है, जिसको कहते हैं - गुरूभक्ति योग।

यह योग अद्भुत है, इसकी शक्ति असीम है। इसका प्रभाव अमोघ है इसकी महत्ता अवर्णनीय है। इस युग के लिये उपयोगी इस विशेष योग पद्धति के द्वारा आप इस हाङ चाम के पार्थिव देह में रहते हुए सदगुरू भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन कर सकते हैं। इसी जीवन में आप उन्हें अपने साथ विचरण करते हुए देख सकते हैं।

गुरू की यह सर्वोच्च विभावना है, और हर साधक को यह प्राप्त करना है। व्यक्तिगत गुरू को स्वीकार करना है। यह साधक की परब्रह्म में विलीन होने की तैयारी है, और उस दिशा में एक सोपान है। गुरू की विभावना के विकास के लिये व्यक्ति की गुरू के प्रति शरणागति एक महत्त्वपूर्ण सोपान है। फ़िर साधना के किसी भी सोपान पर गुरू की आवश्यकता का इन्कार कभी नहीं हो सकता। क्योंकि आत्म-साक्षात्कार के लिये तङपते हुए साधक को होने वाली परब्रह्म की अनुभूति का नाम गुरू है। उसी को गुरूतत्त्व भी कहते हैं।

सन्त महापुरूष उपदेश देते हैं कि एकाग्रता ही प्रत्येक काम की सफ़लता की कुंजी है। जिस काम को एकाग्रचित्त होकर किया जाये, वह कठिन से कठिन कार्य भी सफ़ल हो जाता है। ऐसे ही प्रभु प्राप्ति में भी यदि मन को सांसारिक कामनाओं और चिन्तन से हटाकर और मन को एकाग्रचित्त कर श्री सदगुरू के भजन, सुमिरन, ध्यान में लगाया जाये तो अपने लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है।

अभ्यास का अर्थ ही यह है कि किसी भी कार्य को नियमपूर्वक करना अर्थात मन की चित्तवृत्तियों को एकाग्र करने के लिये हर समय अपने मन पर ध्यान रखना। यह ख्याल में रखना चाहिए कि सुरति को भजन ध्यान में लीन करते हुए समाधि अवस्था तक पहुँचना ही जीवन का परम लक्ष्य है।

इस प्रकार प्रभु प्राप्ति के अभिलाषी जिज्ञासुजन इन साधनों को ध्यान में रखते हुए अपनी चित्तवृत्तियों को माया की ओर से समेट कर श्री सदगुरू की भक्ति की ओर लगाते हैं तथा अपने ध्यान को श्री सदगुरू के स्वरूप पर ठहराते हैं। श्री सदगुरू के नाम का भजन उनकी पूजा बन जाती है। इस प्रकार वे अपने जीवन को श्री सदगुरू के उपदेश अनुसार बनाकर लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग सुगम बनाते हैं तथा लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।

गुरू वास्तव में उस परम ईश्वरीय शक्ति का नाम है, जो अपनी अपार दया से जीवों को ऊपर उठाने  नाम भजन के द्वारा उनके ज्ञाननेत्र खोलने मन को शुद्ध व पवित्र बनाने तथा श्री सदगुरूदेव  महाराज की असीम दया से अपनी तरफ़ आकर्षित करने का काम करती है।

श्री सदगुरूदेव के वचन तो महामोह रूपी घने अन्धकार को नाश करने के लिये सूर्य की किरणों के सदृश होते हैं। उनका हर वचन जीवन में नवक्रान्ति लाने वाला होता है। प्रेमीजन उनके एक एक वचन को ह्रदय में धारण करके उन्हें व्यवहार में लाकर परम लाभ का अनुभव करते हैं। श्री सदगुरू देव अपने भक्तों को सीधे सादे शब्दों में यानी अपनी सहज व सरल बोलचाल की भाषा में धर्म, ज्ञान, नीति, भक्तियोग, सेवा का भाव, भजन, सुमिरन, पूजा, दर्शन, ध्यान के तरीके समझा दिया करते थे।

श्री सदगुरूदेव के मुखारविन्द के वाक्य आज भी भौतिकवाद से संतप्त प्राणियों को परम शान्ति और दिव्यता प्रदान करने में समर्थ हैं। आज भी हजारों लाखों साधक जिज्ञासु उन अमर वाक्यों का मनन करके अपने जीवन के परम लक्ष्य सत्यस्वरूप निजपद की प्राप्ति कर सकते हैं।

भक्तजनों को भक्तिरस पिलाने और सत्यमार्ग दर्शाने के लिये श्री सदगुरूदेव युग युग में नाना रूप धारण कर आते हैं। आगे भी स्वामी जी भक्तों को दर्शन देने के लिये आते ही रहेंगे।

श्री सदगुरूदेव का श्रद्धा, विश्वास तथा भाव पूर्वक जो उनके अमृतरूप सतसंग के तीर्थ में गोता लगाते रहते हैं उनके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं, और अन्त में वे सभी पापों से छूटकर सायुज्य मुक्ति को पाते हैं। दया, क्षमा, और शान्ति स्वरूप श्री सदगुरूदेव की शरण में जाने पर ही साधक परमपद एवं भक्ति का अधिकारी बनता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

Welcome

मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।