रविवार, जनवरी 01, 2012

शब्द बतावे सो गुरू सोधो




ताते प्रथमहिं गुरू को खोजो।
शब्द बतावे सो गुरू सोधो।

अर्थात सर्वप्रथम यह काम करो कि ऐसे गुरू की तलाश करो कि जो गुरू शब्द व गुरूमन्त्र के भजन, सुमिरन, सेवा, पूजा, दर्शन, ध्यान यानी भक्तियोग का मार्ग बतला बतला कर अध्यात्म की ओर अग्रसर करता रहे।

कई स्थानों पर सन्तों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि -
गुरू सोई जो शब्द सनेही।
शब्द बिना नहिं दूसर सेई।

सच्चा गुरू वही है, जो शब्द सनेही है। दूसरे शब्दों में जिसने स्वयं शब्द का अभ्यास करके परम गति प्राप्त की हो, और श्रीसदगुरू के नाम मंत्रजप की साधना के सब भेदों को जानता हो। तथा गुरू शब्दमार्गी हो। शिष्य को चाहिये कि ऐसे ही गुरू को धारण करे। क्योंकि शिष्य के किये हुए पापों का भार गुरू ही उठाते हैं। जो गुरू शब्दगामी होते हैं, और शब्द का अभ्यास औरों को कराते हैं। वही शब्दमार्गी गुरू होते हैं।

इसीलिये सन्तों का कथन है -
गुरू करे जान के, पानी पीवे छान के।

और -
गुरू गुरू में भेद है, गुरू गुरू में भाव।
सोई गुरू नित बन्दिये, जो सबद बतावै दाव।

अपनी अपनी जगह सभी साधु महात्मा बङे हैं पर जो शब्द के विवेकी और पारखी हैं। वे सदगुरू तो सिरमौर हैं। उनकी महिमा सबसे ऊंची है -

साधु साधु सब ही बडे, अपनी अपनी ठौर।
सबद विवेकी पारखी, ते माथे के मौर।

ऐसे गुरू का शिष्य हो जाना चाहिये जो नाम के शब्द के यानी परानाम के सुमिरन की युक्ति बतावे। उनका ही भजन, सुमिरन, सेवा, पूजा करके उनकी कृपा प्राप्त करने का सभी सन्त परामर्श देते हैं। ऐसे गुरू ही अपने शिष्यों का पूरी तरह से कल्याण करते हैं।

श्रीसदगुरू महाराज ही देहधारियों के धारण करने वाले, पालन पोषण करने वाले तथा वे ही सबके परम हितकारी हैं। श्रीसदगुरूदेव महाराज ही सबकी गति तथा मति के स्वामी हैं। इस संसार में श्रीसदगुरूदेव से बढकर जीव का कल्याण करने वाला दूसरा और कोई नहीं है।

लोक कल्याणकारी व्यास ने पहले तो पारमार्थिक जिज्ञासा के लिये अपने पुत्र को आशीष दी। तदन्तर श्रीगुरू परम्परा से प्राप्त अनादि ज्ञान को कहना शुरू किया। उन्होंने बताया कि उनके श्रीसदगुरू थे नारदजी और उनके गुरू के श्रीगुरू के श्रीगुरू साक्षात शिव थे।

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।