सोमवार, मार्च 22, 2010

सर्वजीत और कबीर साहेब

सर्वजीत और कबीर साहेब,|
आज से लगभग ५०० बरस पहले की बात है जब महान संत कबीर का प्रकटीकरण इस धरती पर हो चुका था कलियुग मैं अबकी बार ये संत आत्मा कबीर के नाम से प्रकट हुई थी . उसी समय काशी मैं सर्वजीत नामका एक महाविद्धान रहता है । सर्वजीत ने समस्त शास्त्रों का अध्ययन इस तरह किया था कि वो उसे मुंह जबानी याद थे वह किसी बात का जिक्र या बहस पूरे सबूतों के साथ देता था । वह एक वेळ पर सभी शास्त्रों को लादे रहता था और उस समय के विद्वानों को चुनोती देता था कि मैं सबसे बड़ा विद्वान हूँ मुझसे शास्त्रार्थ करो या फिर हार मानकर लिखो कि सर्वजीत मुझसे अधिक विद्वान है ।
बड़े बड़े विद्वानों को उससे हार माननी ही पड़ी । उन्ही दिनों सर्वजीत कि माताजी गंगास्नान करने के लिए गई और वहां उनकी मुलाकात कबीर साहेब से हुई । वो कबीर साहेव के ज्ञान से अत्यंत प्रभावित हुई और उनसे ढाई अक्षर के महामंत्र की दीक्षा लेकर आई थी ।
उन्होंने सर्वजीत से कहा की तुझे चाहे कितने ही शास्त्र क्यों न याद हो पर जो बात कबीर साहेब मैं है वो तुझमें छूकर भी नहीं गई ।
अहंकारी सर्वजीत को ये बात सीने मैं गोली की तरह लगी .वह अपने शास्त्रों से लादे वेळ पर सवार हुआ और कबीर के घर जा पहुंचा । कबीर साहेब उस समय घर पर नहीं थे दरवाजा उनके पुत्र कमाल ने खोला | सर्वजीत ने पूछा कबीर का घर यही है । कमाल ने उत्तर दिया..
कबीर का घर शिखर पर जहाँ सिल्बिली गेल..पिपीलिका रपटे जहाँ तू लादे है वेळ..?
सर्वजीत यह उत्तर सुनकर भन्ना गया उसने अपने समस्त ज्ञान का उपयोग किया पर इस प्रश्न का मतलब न समझ सका ।
तभी कबीर साहेब आ गए .सर्वजीत ने कहा मुझसे शास्त्रार्थ करो कबीर साहेब सरलता से बोले की मुझे शास्त्रों का ज्ञान नहीं है तब सर्वजीत बोला की मुझे लिखकर दो की तुम मुझसे शास्त्रार्थ मैं हार गए कबीर ने कहा की मैं पड़ा लिखा नहीं हूँ तुम स्वयं लिख लो मैं अंगूठा लगा दूंगा ..
सर्वजीत ने लिखा.. कबीर हारे सर्वजीत जीते.. कबीर साहेव ने उस पर अंगूठा लगा दिया । सर्वजीत ने घर आकर वो कागज़ अपनी माँ को दिखाया तो उस पर लिखा हुआ था.. कबीर जीते.. सर्वजीत हारे..
सर्वजीत हैरान रह गया कागज़ उसने स्वयं लिखा था .उसने सोचा की शायद जल्दी मैं गलत लिख गया हो .वो दुवारा कबीर के घर पहुंचा .दुवारा कागज़ लिखा और कबीर से अंगूठा लगवाया .फिर घर जाकर उसने कागज़ अपनी माँ को दिखाया तो उस पर फिर से लिखा हुआ था .. कबीर जीते सर्वजीत हारे..
अबकी उसने कागज़ बहुत ध्यान से लिखा था और पक्का यकीन से लिखा था.. उसका घमंड चूर चूर हो गया वो उलटे पाँव कबीर के पास गया और महात्मा कबीर के चरणों मैं गिर पड़ा .

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

जिसके पास जानकारी नही होती वो घमंडी रहता है जब समझ आने लगता है तब घमंड जाने लगता है

Unknown ने कहा…

kabir bahut mahan sant the. Unse koi jit nahi paya. Unke gyan ke bhandar ko samajh pana muskil hai. Ye sadharan logo k bas ki bat nahi hai

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मेरी फ़ोटो
Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।