गुरुवार, नवंबर 17, 2011

मैं महासागर के समान हूँ - अष्टावक्र गीता अध्याय - 6

जनक उवाच - आकाशवदनन्तोऽहं घटवत प्राकृतं जगत । इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः । 6-1
जनक बोले - आकाश के समान । मैं अनंत हूँ । और यह जगत । घड़े के समान । महत्त्वहीन है । यह ज्ञान है । इसका न । त्याग करना है । और न गृहण । बस इसके साथ । एकरूप होना है । 1
महोदधिरिवाहं स प्रपंचो वीचिसऽन्निभः । इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः । 6-2
मैं । महासागर के । समान हूँ । और यह । दृश्यमान संसार । लहरों के समान । यह ज्ञान है । इसका न । त्याग करना है । और न गृहण । बस इसके साथ । एकरूप होना है । 2
अहं स शुक्तिसङ्काशो रूप्यवद विश्वकल्पना । इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः । 6-3
यह विश्व । मुझमें । वैसे ही । कल्पित है । जैसे कि सीप में चाँदी । यह ज्ञान है । इसका न । त्याग करना है । और न गृहण । बस इसके साथ । एकरूप होना है । 3
अहं वा सर्वभूतेषु सर्वभूतान्यथो मयि । इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः । 6-4
मैं । समस्त । प्राणियों में हूँ । जैसे सभी । प्राणी । मुझमें हैं । यह ज्ञान है । इसका न । त्याग करना है । और न गृहण । बस इसके साथ । एकरूप होना है । 4

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।